म्यांमार में लोकतंत्र के लिए शांतिपूर्ण तरीके से लड़ रही नेता आंग सान सू ची को अठारह महीने की सजा देकर म्यांमार की फौजी सरकार ने दिखा दिया है कि अंतरराष्ट्रीय जनमत की उसे कितनी परवाह है। इस फैसले से अगले साल होने वाले चुनावों की असलियत भी अभी से स्पष्ट हो गई है। अब देखना यह है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय मिलकर फौजी सरकार पर कितना दबाव डाल सकता है कि वह दमन और हिंसा छोड़े और लोकतंत्र के लिए रास्ता साफ करे। यूरोपियन यूनियन जरूर फौजी सरकार के खिलाफ सख्त पाबंदियों की बात कर रही है लेकिन, बाकी दुनिया को भी इस फौजी तानाशाही के खिलाफ एकजुट होना होगा और लोकतंत्र समर्थक बर्मी जनता और नेताओं का साथ देना होगा, जो इतने सालों से शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से विरोध में लगे हुए हैं। दरअसल दिक्कत यह है कि जाहिर तौर पर लगभग सभी देश फौजी शासन के खिलाफ हैं, लेकिन उनके पास नैतिक आधार नहीं है, जिससे वे फौजी शासन का विरोध करें। अमेरिका और उसके यूरोपीय साथी म्यांमार में तानाशाही के खिलाफ हैं लेकिन पाकिस्तान में एक के बाद एक फौजी तानाशाहों को उन्होंने समर्थन दिया है। लातिन अमेरिका और अफ्रीका के कई तानाशाह पश्चिम के बड़े प्रियपात्र रहे हैं। दूसरी दिक्कत यह है कि इस क्षेत्र की दोनों बड़ी ताकतें, चीन और भारत फौजी तानाशाही से दोस्ती बनाए हुए हैं। चीन के लिए तो मानवाधिकार, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी जैसी बातें कोई कीमत नहीं रखतीं और उसने सू ची को सजा सुनाए जाने का भी समर्थन किया है। भारत लोकतांत्रिक देश है, लेकिन म्यांमार से उसके कई अर्थिक और रणनीतिक हित जुड़े हुए हैं।
दूसरे भारत को ऐसा लगता है कि अगर उसने म्यांमार की मौजूदा हुकूमत का विरोध किया तो वह पूरी तरह चीन की गोद में चली जाएगी। इसलिए भारत का नजरिया यह है कि फौजी तानाशाही का बहिष्कार करने की बजाए उससे संबंध बनाकर उसे लोकतंत्र के हक में कदम उठाने को समझाया जाए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में म्यांमार सरकार के खिलाफ किसी कदम को रोकने के लिए चीन मौजूद है और जब तक चीन और भारत उसके खिलाफ नहीं हैं, बाकी जनमत की परवाह म्यांमार सरकार नहीं करेगी। लेकिन अब वक्त है कि फौजी तानाशाहों को झुकने के लिए बाध्य किया जाए वरना देर सवेर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने ज्यादा बड़ी मुश्किल आ सकती है। पिछले दिनों ऐसी खबरें आई थीं कि उत्तर कोरिया और कुछ भागे हुए पाकिस्तानी वैज्ञानिकों की सहायता से म्यांमार सरकार परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रही है जिसे चीन का भी अप्रत्यक्ष सहयोग है। अगर दुनिया को ज्यादा बड़ी मुश्किल का सामना नहीं करना है तो म्यांमार सरकार के खिलाफ अभी सख्त कदम उठाने चाहिए।