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कोई नहीं रहेगा भूखा: प्रधानमंत्री

आर्थिक मंदी के बाद भयानक सूखे की मार से बचने के लिए यूपीए सरकार ने व्यापक रणनीति तैयार की है। इसका खुलासा करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खास तौर पर सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खाद्यान्न की...

कोई नहीं रहेगा भूखा: प्रधानमंत्री
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 09 Aug 2009 01:37 AM
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आर्थिक मंदी के बाद भयानक सूखे की मार से बचने के लिए यूपीए सरकार ने व्यापक रणनीति तैयार की है। इसका खुलासा करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खास तौर पर सूखा प्रभावित क्षेत्रों में खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने और बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए जमाखोरों और कालाबाजरियों के साथ सख्ती से पेश आने का एलान किया है। प्रधानमंत्री का कहना है कि अकाल की इस घड़ी में सरकार आम आदमी को बाजर के भरोसे नहीं छोड़ सकती। सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि कोई भी भूखा न रहने पाए।

शनिवार को यहां सूखे पर राज्यों के मुख्य सचिवों की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने राज्यों को निर्देश दिए कि वे खाद्यान्नों की आसान उपलब्धता और आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर लगाम लगाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि राज्यों की जरूरत के मुताबिक केंद्र अतिरिक्त सहायता देने के लिए तत्पर है।

मनमोहन ने कहा कि राज्यों को खाद्यान्न खरीद और भंडारण के साथ ही वितरण मशीनरी को चाक-चौबंद रखने की जरूरत है। वितरण व्यवस्था में खामी सारे प्रयासों पर पानी फेर सकती है। उन्होंने कहा कि खाद्यान्न खरीद और भंडारण में राज्यों को भी केंद्र की सहायता करनी चाहिए ताकि लागत में कमी आए। अगर जरूरत हुई तो हम बाजर में हस्तक्षेप करने से भी नहीं हिचकेंगे। उन्होंने कालाबाजरियों और जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए।

इधर, भारत की गरीबी और कुपोषण के नाते खाद्य सुरक्षा देश की बहुत बड़ी जरूरत है। खाद्य सुरक्षा अधिनियम की दिशा में सरकार की पहल से उम्मीद बंधती है, क्योंकि उसके पास इतने संसाधन हैं कि वह इसे सफल बना सकती है। ऐसा मानना है कि नोबेल अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन का। वह कहते हैं कि भारत जैसे विशाल देश में सभी को भोजन उपलब्ध कराना एक विराट चुनौती है। पर यह खुशी की बात है कि पहले की तरह भारत आज जति और धर्म से संकीर्ण विवादों में उलझा हुआ नहीं है, न ही वश्विक आर्थिक मंदी से उसकी अर्थव्यवस्था उस तरह प्रभावित हुई है जैसी अमेरिका और यूरोप के देशों की।

प्रो. सेन ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल का स्वागत करते हुए कहा कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें स्वास्थ्य , कुपोषण , शिक्षा, आय, प्रजनन और कई दूसरे मसलों को एक-दूसरे से जोड़कर देखना होगा। इसी तरह ही, बच्चे, लड़कियां, माएं और वंचित वर्ग सभी पर अलग -अलग तरह से फोकस करना होगा और उनके आपसी संबंधों पर भी ध्यान देना होगा।

उन्होंने कहा कि इस काम में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है लेकिन निजी क्षेत्र का  भी अपना रोल है। साथ ही संघों और संगठनों का योगदान भी महत्वपूर्ण होगा। वसे यहां हम बहुत पीछे हैं क्योंकि यूरोप ने मिड-डे मील कार्यक्रम आज से दो सौ साल पहले चलाया था। इसलिए हमें ज्यादा गहरी समझ और शिद्दत के साथ जुटना होगा। प्रो. सेन ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) को पूरी तरह रद्द कर सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू करने की मांग का समर्थन नहीं किया । उनका कहना था कि रास्ता दोनों के बीच में कहीं है।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने भारत के कुपोषण के आंकड़ों को पूरी दुनिया से खराब बताते हुए आगाह किया कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम को मौजूदा कार्यक्रमों का नया पैकेज बना देने से काम नहीं चलेगा। न ही इसके लिए कोई एक संस्था पूरी तरह कारगर होगी। यह सरकार और समाज के लिए संपूर्ण नजरिए से काम करने का एक खास मौका है। ‘भोजन के अधिकार का अभियान’ की तरफ से प्रेस क्लब में आयोजित इस कार्यक्रम में हर्ष मंदर, कविता श्रीवास्तव और योगेंद्र यादव ने भी अपने विचार रखे।

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