एशियाई शेर
शेर की दो प्रजातियां हैं। पहला एशियाटिक शेर, दूसरा अफ्रीकी शेर होता है। यह तो तुम समझ गये होंगे कि हमारे देश में एशियाटिक शेर ही पाया जाता है। यह प्रजाति पेन्थिरा लिओ कहलाती है। इनका शरीर...
शेर की दो प्रजातियां हैं। पहला एशियाटिक शेर, दूसरा अफ्रीकी शेर होता है। यह तो तुम समझ गये होंगे कि हमारे देश में एशियाटिक शेर ही पाया जाता है। यह प्रजाति पेन्थिरा लिओ कहलाती है। इनका शरीर मिट्टी जैसे भूरे रंग का होता है। शेर सामान्यत: परिवार सहित रहते हैं।
शेर की लम्बाई 250 से 300 स़ेंमी़ होती है। मादा शेर के शरीर का आकार थोड़ा छोटा होता है। अफ्रीकी शेर इनसे लगभग 30 सेंमी़ ज्यादा लम्बा होता है। शेर हमेशा खुले में रहना पसंद करते हैं। इसलिए ये ऊंची घास वाले जंगलों में नहीं रहते। इसी कारण से इनका शरीर छरहरा न होकर, गठीला होता है।
शेरों के बारे में एक अनोखी बात बताते हैं। शेर समूहों में बहुत ही समझदार नीति से शिकार करते हैं, जिसमें कुछ सदस्य शिकार को चालाकी से दूसरे सदस्यों की ओर खदेड़ते हैं। तब बाकी सदस्य छापामारों की तरह शिकार पर टूट पड़ते हैं। अधिकतर शेरनी शिकार पर हमला करती है।
शिकार के मरते ही पहले शेर अपना हिस्सा खाता है। पता है, वह शिकार का सबसे अच्छा और मांसल हिस्सा खा जाता है। उसके बाद बच्चों को मौका मिलता है तथा अंत में शेरनी की बारी आती है।
शेरों के संबंध में एक दुखद पहलू यह है कि इनकी संख्या अब बहुत सीमित है। एक समय यह प्राणी एशिया में कई जगह तथा अरब और फारस में पाया जाता था। किन्तु अब यह केवल हमारे देश के गुजरात राज्य में गिर के जंगलों के सीमित क्षेत्रों में रह गया है।
दरअसल बीसवीं शताब्दी के आरम्भ के कुछ वर्षो तक शेरों का बड़े पैमाने पर शिकार किया जाता रहा। जूनागढ़ के शासकों के प्रयासों से इसका शिकार कम हुआ और गिर के जंगलों में यह वन्य जीव बच सका। आजादी के बाद शेर को संरक्षण प्रदान किया गया तथा गिर वन
का एक हिस्सा राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया।
आज यदि शेर को इनके प्राकृतिक परिवेश में स्वच्छंद विचरण करते देखना हो तो हमें गिर राष्ट्रीय उद्यान में घूमने जाना होगा। यह गुजरात के जूनागढ़ जिले में लगभग 1400 वर्ग कि़मी़ में फैला है। वहां की वनस्पति में मुख्यत: छोटे सागवान के पेड़, वलास, बेर, बांस, कंटीली झड़ियां आदि ने इन्हें आश्रय दे रखा है।