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साहित्य में टेस्ट ट्यूब

25 जुलाई 1978 को जो पहला टेस्ट ट्यूब बेबी डॉ. एडवर्ड और डॉ. स्टेपटो ने पैदा किया, उस पर 31 वर्ष बाद मौलाना लादेन के कान पर जूं रेंगी। बोले- ‘अमां हटो, बच्च न हुआ निगोड़ा कुल्फी हो गया कि ठंडे...

साहित्य में टेस्ट ट्यूब
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 04 Aug 2009 11:14 PM
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25 जुलाई 1978 को जो पहला टेस्ट ट्यूब बेबी डॉ. एडवर्ड और डॉ. स्टेपटो ने पैदा किया, उस पर 31 वर्ष बाद मौलाना लादेन के कान पर जूं रेंगी। बोले- ‘अमां हटो, बच्च न हुआ निगोड़ा कुल्फी हो गया कि ठंडे बक्से में जमा ली। इस रिसर्च पर मैं नहीं इतरा सकता। हमारे यहां साहित्य में टेस्ट ट्यूब वर्षो पहले से चल रहा है। ‘तपिश’ अमीनाबादी को जानते हो? वही जो शेर कम पढ़ते हैं हाथ-पांव ज्यादा फेंकने में माहिर हैं। उनका सारा कलाम टेस्ट ट्यूबी है। नहीं समझे? एक शेर किसी का टीपा, दूसरा किसी का झटका। काफिया सही किया। कुछ दिन डायरी में हिलाते रहे। गजल तैयार। मुशायरे के मंच पर दे मारी। समझने वाले समझ गए कि माल कहां-कहां से हासिल किया गया है। तालियां पिटती रहीं। शेर-शायरी और कविताई में हम टेस्ट ट्यूबी बच्चे खूब देख चुके हैं।’

मुंह में ताजा पान झोंक कर बोले- ‘महाकवि ‘बिजूका’ को जानते ही हो। हास्य में उनका सारा काम टेस्ट ट्यूबी है। कदम-कदम पर शैल चतुव्रेदी और आदित्य नजर आएंगे। फिर भी पब्लिक मजा लेती है। उन्होंने कविताई में जितने गोल मारे हैं, सब टेस्ट ट्यूबी हैं। आप कभी उनके घर चले जाइए। दूसरों की रचना पर काट- छांट करने में व्यस्त नजर आएंगे। कई रचनाएं आपकी भी छान फटक कर कविता में ढाल चुके हैं। सब टेस्ट ट्यूबी काम है, लल्ला। मतलब तालियों और लिफाफे से है। किसे फुर्सत है, जो पता करे कि ओरीजिनल माल किसका है? मंच पर टेस्ट ट्यूब कविता आजकल खूब चल रही है।

मैं सहमत हो गया। मुझे तो मंच छोड़े बारह वर्ष हो गए, पर यार लोग बताते हैं कि तुम्हारी फलां-फलां रचना फलां-फलां ने काट-छांट कर कविता में तब्दील करके, अपनी बना ली और वाहवाही लूटी। पुराने सुनने वाले खुसर-फुसर करते ही रह गए कि चीज गद्य में के पी से सुनी है। टीप-टीप कर नई रचना पैदा करना ही टेस्ट ट्यूब ऐक्सपेरीमेंट है।

मौलाना बोले- ‘अब आप ही मुझे बताइए कि जो आदमी इतना टेस्ट ट्यूबी साहित्य ङोल चुका हो, वह भला नलकी में पैदा हुए बच्चे का रोब खाएगा? सच पूछिए, ब्रिटेन वाले जरा ज्यादा जल्दबाज हैं। हम लोगों में अब भी शराफत बाकी है। हमने टेस्ट ट्यूब में अपने ढंग से नई नवेली कविता का गर्भाधान कर लिया। मंच-माइक पर चल निकले। यानी साहित्य की इन नाजायज औलादों से मंच की रौनक बढ़ रही है। मेरा सीना फक्र से चौड़ा हो गया। जिस टेस्ट ट्यूब को अब दर्जा मिला है, वह हमारे यहां वर्षो से है। अलग-अलग नस्लों के दो चुटकुले टेस्ट ट्यूब में डाल कर हिलाए.. नई हास्य कविता तैयार। लगे रहो...।

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