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परोपकारी वृत्ति

मेरे पड़ोस में एक वृद्ध महिला रहती हैं। सौम्य चेहरा, पोपली मुस्कान- देखते ही मन में श्रद्धा होती है।अकेली हो कर भी अकेली नहीं हैं। किसी न किसी के उपकार में लगी रहती हैं। कोई चिट्ठी लिखवाने या पढ़वाने...

परोपकारी वृत्ति
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 30 Jul 2009 09:06 PM
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मेरे पड़ोस में एक वृद्ध महिला रहती हैं। सौम्य चेहरा, पोपली मुस्कान- देखते ही मन में श्रद्धा होती है।अकेली हो कर भी अकेली नहीं हैं। किसी न किसी के उपकार में लगी रहती हैं। कोई चिट्ठी लिखवाने या पढ़वाने आ रहा है, किसी गरीब लड़की को सिलाई-बुनाई सिखा रही हैं, किसी के लिए खांसी का काढ़ा बना रही हैं, वगैरह..वगैरह। वे दिन भर इसी में व्यस्त रहती हैं।

सच तो यह है कि अपने लिए तो सभी जीते हैं, पर जो दूसरों के बारे में सोच सके, उपकार कर सके,वस्तुत: वही महान है। निरंतर देते रहने से मनुष्य न केवल दूसरों का उपकार करता है, बल्कि इसके साथ ही अपना भी विकास करता है। किसी को पढ़ाने सिखाने से प्रार्थी का भला तो होता ही है, हमें दुआएं भी मिलती हैं। साथ ही इन कार्यो में जो श्रम लगा, उससे कार्य निपुणता बढ़ती है, मन आह्लादित होता है।

गुरु नानक, संत कबीर, रहीम, आदि कवियों की रचना का ध्येय परोपकार की वृत्ति ही थी। असंख्य लोगों ने इससे ज्ञान प्राप्त किया। परोपकारी वृत्ति जिस क्षेत्र में प्रवेश करती है, वहीं प्रदर्शित होने लगती है। राजनीति के क्षेत्र में महात्मा गांधी की ख्याति के बहुत से कारणों में परोपकार वृत्ति की ही प्रधानता है। स्वयं अपने स्वार्थ के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। अपना समय, धन, चिंतन, श्रम यहां तक कि शरीर भी देश के लिए अर्पित कर दिया और असंख्य लोगों के मन में बस गए। आचार्य बिनोवा भावे की परोपकारी वृत्ति को ही देखें, स्वयं उनके पास कदाचित रहने का मकान भी न था, पर गरीब बेघर लोगों के लिए भूमि एकत्र करने के लिए गांव-गांव पैदल ही भागते रहे। परोपकारी वृत्ति के ऐसे न जाने कितने उदाहरण हैं, जो हमें सिर्फ अपने लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी सोचना सिखाते ही नहीं, बल्कि जीना भी सिखाते हैं। जो दूसरों के लिए जीते हैं, उनकी अपनी जिंदगी नई ऊंचाई हासिल करती है।

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