जनता से छुपी रहेगी जज की संपत्ति
न्यायपालिका में सर्वोच्च स्तर पर आमूलचूल सुधार व पारदर्शिता लाने की सरकार की कोशिशें परवान चढ़ती नहीं दिख रहीं। वजह यह है कि गुरुवार आधी रात को कैबिनेट ने जिस बहुप्रतीक्षित न्यायाधीश संपत्ति विधेयक...
न्यायपालिका में सर्वोच्च स्तर पर आमूलचूल सुधार व पारदर्शिता लाने की सरकार की कोशिशें परवान चढ़ती नहीं दिख रहीं। वजह यह है कि गुरुवार आधी रात को कैबिनेट ने जिस बहुप्रतीक्षित न्यायाधीश संपत्ति विधेयक को हरी झंडी दी है, उससे सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जज अपनी संपत्ति तो घोषित करेंगे, लेकिन आम जनता को उनकी संपत्ति का ब्यौरा जनने का कोई हक नहीं होगा।
‘हिन्दुस्तान’ को सरकार के शीर्ष सूत्रों से यह जनकारी मिली है कि कैबिनेट ने विधेयक में इस प्रावधान को स्वीकार कर लिया कि सूचना अधिकार कानून के तहत कोई नागरिक जजों, उनकी पत्नी व बच्चों के नाम अंकित संपत्ति का ब्यौरा हासिल नहीं कर सकेगा। यह विधेयक संसद में अगले सप्ताह पेश किया जएगा।
वसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक ने इस विधेयक पर मोहर लगाने के फैसले को इतना गुप्त रखा कि मीडिया को आधिकारिक सूचना देने से ही कन्नी काट ली। सूत्रों ने बताया कि संसद सत्र चालू होने की वजह से कैबिनेट का फैसला सार्वजनिक नहीं किया गया है।
हालांकि सरकार जजों की संपत्ति सार्वजनिक न करने के दबाव के आगे झुक गई लगती है, लेकिन जनकारों का मानना है कि सरकार के लिए इस विधेयक को मौजूदा स्वरूप में पारित कराने में संसद में काफी मुसीबतें पेश आ सकती हैं। ऐसे आसार हैं कि दलीय राजनीति से ऊपर उठकर संसद में यह दबाव बन सकता है कि जजों व उनके परिजनों की संपत्ति का ब्यौरा उसी ढंग से सार्वजनिक हो जसा कि सांसदों, मंत्रियों व विधायकों के मामले में होता है।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे. एस. भगवती ने कहा, ‘किसी चीज को गोपनीय तभी रखना होता है जब उसमें कोई रहस्य होता है अथवा कोई सच्चाई जनता से छिपानी होती है।’
जनेमाने न्यायविद व सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर ने भी जजों की संपत्ति को गोपनीय रखने के कदम को शर्मनाक बताया है।
दो दजर्न से ज्यादा शीर्ष न्यायविद, जिनमें पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण व फाली एस. नारिमन शामिल हैं, एक हस्ताक्षरित बयान में मांग कर चुके हैं कि जब तक जजों व नौकरशाही कुर्सियों पर बैठे लोगों की संपत्ति सार्वजनिक नहीं होती, न्यायपालिका में सुधार की बातें करना बेममलब होगा।