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सुरक्षा कानून में भेदभाव

सड़क दुर्घटनाओं से बचाव हेतु दुपहिया वाहन के लिए हेलमेट लगाना अनिवार्य है। लेकिन चालक हेलमेट का प्रयोग सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि चालान से बचने के लिए करते हैं। पर पुलिसवाले बिना हेलमेट के सड़कों पर...

सुरक्षा कानून में भेदभाव
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 24 Jul 2009 09:56 PM
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सड़क दुर्घटनाओं से बचाव हेतु दुपहिया वाहन के लिए हेलमेट लगाना अनिवार्य है। लेकिन चालक हेलमेट का प्रयोग सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि चालान से बचने के लिए करते हैं। पर पुलिसवाले बिना हेलमेट के सड़कों पर दिखाई देते हैं, क्योंकि उन्हें तो चालानकटने का भी डर नहीं होता है। दरअसल, केवल चालक ही सुरक्षा का हकदार नहीं है, बल्कि उसके पीछे बैठी महिला को भी हेलमेट लगाना चाहिए, दूसरी तरफ चालक के पीछे अगर पुरुष है तो उसे भी हेलमेट पहनना आवश्यक है। कमी कहां है? हमारे कानून में या हमारी लापरवाही में। आखिर यह सुरक्षा कानून, किसके लिए है?

शक्तिवीर सिंह ‘स्वतंत्र’जामिया


यह कैसा नैतिक दायित्व

हाल ही में मेट्रो दुर्घटना पर मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक डॉ श्रीधरन ने इस प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा अधिकारी होने केकारण दुर्घटना के लिए नैतिक दायित्व मानते हुए त्यागपत्र दे दिया। टिप्पणी आई कि यह लालबहादुर शास्त्री के आदर्श का निर्वाह है, जिन्होंने रेल दुर्घटना होने पर उसके लिए नैतिक दायित्व स्वीकार करते हुए मंत्रीपद से त्यागपत्र दे दिया था। मेरे मन में सदैव यह प्रश्न उठता रहा है कि जो शास्त्री जी ने किया क्या वह सही था? इस गंभीर विषय पर मेरे विवेचन में दायित्व दो प्रकार का होता है। एक कार्य-दायित्व, यह उस व्यक्ति का होता है, जो कार्य कर रहा है। यदि वह काम में जानबूझ कर या असावधानी से त्रुटि करता है तो दुर्घटना के लिए वह उत्तरदायी है। दूसरा, नैतिक दायित्व जो उस अधिकारी का होता है, जिसके आदेश या निर्देश के अनुसार कार्य करने पर दुर्घटना होती है। ऐसा न होने पर भी नैतिक दायित्व मानना और त्यागपत्र देना भ्रामक है। तब तो कोई भी कर्मचारी जो अधिकारी से रुष्ट है, विकृत मानसिकता में आकर, जानबूझ कर दुर्घटना करके अधिकारी की छुट्टी करा सकता है। एक बार दिल्ली में पुलिस ने लाठी चार्ज किया था। तब तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने नैतिक दायित्व स्वीकार कर त्यागपत्र दे दिया था। तब एक पुलिस अधिकारी ने कहा था कि अब तो हम जब चाहें, लाठी चार्ज करके गृहमंत्री को पद से हटा सकते हैं। जब कोई बड़ा व्यक्ति कोई कठिन कार्य करता है तब लोग वाह वाही करके उसे आदर्श बना देते हैं, उसके सैद्धांतिक तत्व का चिंतन किए बिना, क्या उचित होगा?

डॉ. रमेश चन्द्र नागपाल, भवन प्रगति मंगलम, डी-2239, इंदिरा नगर, लखनऊ

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