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शिन्जियांग : कड़ा रवैया अपनाना जरूरी

भारत का शिन्जियांग के जन विद्रोह से सीधा सरोकार है, जैसे तिब्बत के साथ है। लद्दाख के पड़ोसी इस चीनी प्रान्त से भारत का रिश्ता इतिहास के नाते है, भौगोलिक भी। इन दोनों से भी अधिक मतलब अल्पसंख्यकों के...

शिन्जियांग : कड़ा रवैया अपनाना जरूरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 22 Jul 2009 09:36 PM
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भारत का शिन्जियांग के जन विद्रोह से सीधा सरोकार है, जैसे तिब्बत के साथ है। लद्दाख के पड़ोसी इस चीनी प्रान्त से भारत का रिश्ता इतिहास के नाते है, भौगोलिक भी। इन दोनों से भी अधिक मतलब अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों के परिरक्षण के कारण भी है, जिसकी परिधि विश्वव्यापी होती है। बहुलतावादी भारतीयों को उइगुर मुसलमानों की ऐतिहासिक अस्मिता संवारने का बस दर्द ही है, जैसा तिब्बती बौद्धों के प्रति रहा है। सेक्यूलर, प्रजातांत्रिक भारत का शिन्जियांग की अकलियतों पर हो रही नृशंसताओं से द्रवित होना
स्वाभाविक है। आखिर कम्युनिस्ट चीन के केन्द्रीय सरकार से इन उइगुर मुसलमानों ने मांगा क्या था? वे अधिकार जिनका भारत में हर मुसलमान दशकों से निर्बाध रूप से उपभोग कर रहा है। उइगुर के लोग चाहते है: उन्हें जुम्मे की नमाज़ अदा करने दी जाय, मस्जिदों में वजू करने हेतू नल का पानी मिले, हज यात्रियों की संख्या में की गई कटौती खत्म हो, उनकी रिहाइशी बस्तियों में घेंटी का गोश्त न बेचा जाय, उनकी मातृभाषा तुर्की को सीखने पर लगी पाबंदी हटा ली जाय और उन पर मंडारिन भाषा न लादी जाय। उनके अपने रोजगार में आयातीत बहुसंख्यक हान वर्ण के चीनी जन को वरीयता न दी जाय। उनकी ऐतिहासिक राजधानी काशगर में विश्व धरोहर करार दी गई इमारतें ध्वस्त कर आवासीय कॉलोनी न बनाई जाय।

इसलिए विश्व का हस्तक्षेप शिन्जियांग में उतना ही वाजिब, तार्किक और समीचीन है जितना डारफूर (सूडान) में चीन का था औरअब स्वात घाटी में अमेरिका का है। इस अवधारणा को कौन नकार सकता है कि पशुता जब मानवता पर हावी हो जाये, तब तटस्थ दर्शक बने रहना पाप है। मजहब के नाम पर बना विश्व का एक अकेला राष्ट्र इस्लामी पाकिस्तान शिन्जियांग की घटनाओं पर खामोश है, क्योंकि चीन से उसकी घनिष्ठ यारी है। चीन से शस्त्र, अनाज और इमदाद का पाकिस्तान मोहताज है।

मजहबी उइगुर मुसलमानों पर चीन द्वारा ढाया जा रहा यह कहर इस्लामाबाद के सत्तासीन लोगों के लिये कोई अहमियत नहीं रखता है। मगर सेक्युलर भारतीयों के लिए यह आक्रोश तथा चिन्ता का सबब है। तिब्बत तथा मुस्लिम शिन्जियांग को उपनिवेश बनाये
रखने के लिए चीन ने लद्दाख की अक्साईचिन वाली विशाल भूमि पर कब्जा कर रखा है। इन दोनों हिमालयी प्रान्तों को इस अवैध कब्जेवाली भारतीय जमीन पर सड़क बनाकर चीन ने जोड़ा है। अपनी सशस्त्र सेना को तैनात कर पूरे भू-भाग को छावनी बना डाला है। तिब्बत की भांति शिन्जियांग पर भी मार्शल लॉ को बरकरार रखने में चीनी सेना भारतीय भू-भाग के मार्ग से ही वहां जाती है।

चीनी जनवादी गणराज्य की 1949 में घोषणा होने के सालभर में ही माओं जेडोंग ने ल्हासा (तिब्बत) और उरूम्की (शिंजियांग)पर सेना का आधिपत्य बना लिया और ऐलान कर दिया कि ये दोनों बौद्घ तथा इस्लामी राष्ट्र चीन के स्वायत्तशासी प्रान्त हैं। दोनों जगहोंमें एक सदी से भारत का वाणिज्य दूतावास कार्यरत था। कम्युनिस्ट चीन ने इन्हें बन्द करा दिया। यह मसला भारतीय लोकसभा मेंउठा था। तब चीन ने शिन्जियांग से तिब्बत तक के गलियारे का गुपचुप निर्माण कर लिया था इस पर भी संसद में प्रश्न उठा था। चीन ने भारत के जिस क्षेत्र पर कब्ज किया है, उसमें अक्साईचिन भी है और इसका प्रशासनिक नियंत्रण अब शिन्जियांग के प्राचीन नगर काशगर से होता है। काशगर पुरातत्व अध्ययन का एक रूमानी अध्याय है। यहीं मथुरा नरेश और कुषाण वंश के संस्थापक सम्राट कनिष्क का आविर्भाव हुआ था। महर्षि पतंजलि ने भारत और प्राचीन शिन्जियांग के आदान-प्रदान का उल्लेख किया था। इतिहासवेत्ताओं ने इस भू-भाग को सेरिंडिया का नाम दिया था।

नवम्बर में शिन्जियांग की अस्सी लाख जनता चीन के अधिपत्य के छह दशक पूरा करेगी, ठीक तिब्बत की भांति। सवा अरब की हान नस्ल के चीनी जन के सामने उइगुर मुसलमान तो जीरे के बराबर भी नहीं है। लेकिन उनके विरोधी तेवर और स्वर के कारण चीन के बहुसंख्यक उन्हें मिटा देना चाहते है। इसके लिए तीन तरीके अपनाये गए हैं। उइगुरी युवतियों की शादी जबरन हान युवकों से कराईजा रही है। तुर्की भाषा की जगह चीनी मंडारिन को अनिवार्य कर दिया गया है, और उनके मजहबी दस्तूर और रवायतों पर पाबंदीलगाई जा रही है। जनसंख्या की दृष्टि से 1949 में शिन्जियांग में 95 प्रतिशत उइगुर मुसलमान और पांच प्रतिशत हान चीनी थे आज दोनों पचास फीसद, अर्थात ठीक बराबर हो गये हैं। इस्लामी पाकिस्तान को इन समस्त तथ्यों की जानकारी है। शिन्जियांग में इस्लाम खतरे में है फिर भी मजहब का यह थोकवाला ठेकेदार चीन से रिश्ते नहीं खराब करना चाहता, भले ही उइगुर मुसलमान का वजूद ही मिट जाय। इसीलिए भारत जहां बीस करोड़ मुसलमान अमन-सुकून से रह रहे हैं, को आवाज उठानी होगी।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

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