निशान-ए-मजाक
कहते हैं सबसे बड़ा मूर्ख वह होता है, जो चुटकुला सुनने के बाद पूछता है कि फिर क्या हुआ। लेकिन पाकिस्तान पर यह नियम अब शायद लागू न हो क्योंकि अब वहां कोई भी अच्छा चुटकुला अपने आप में ही खत्म नहीं होगा,...
कहते हैं सबसे बड़ा मूर्ख वह होता है, जो चुटकुला सुनने के बाद पूछता है कि फिर क्या हुआ। लेकिन पाकिस्तान पर यह नियम अब शायद लागू न हो क्योंकि अब वहां कोई भी अच्छा चुटकुला अपने आप में ही खत्म नहीं होगा, वह 14 साल की सजा तक जा सकता है। पाकिस्तान के गृह मंत्रालय ने घोषणा की है कि राष्ट्रपति जरदारी पर चुटकुला एसएमएस या ई मेल से भेजना अब एक अपराध होगा और इसके लिए 14 साल तक की सज का प्रावधान कर दिया गया है। चुटकुले किसी भी समाज की जीवंतता का सबसे बड़ा सबूत होते हैं। एक रचानत्मक समाज खुद पर, अपने नुमाइंदों पर, अपने नेताओं पर हंस सकता है। फौजी शासन और राजनैतिक अराजकता के लंबे दौर में पाकिस्तान ने अपनी जीवंतता इन्हीं चुटकुलों के जरिये ही बचा कर रखी है। जनरल अयूब खान से लेकर जुल्फिकार अली भुट्टो, जिया उल हक और परवेज मुशर्रफ तक सभी इन चुटकुलों के निशाने पर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि उन्हें बुरा नहीं लगा होगा, लेकिन समाज की इस रचनात्कता के खिलाफ खड़े होकर अपना मजाक बनवाने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई। किसी सरकार को अगर अपने ही प्रमुख के खिलाफ चुटकुला न सुनाने का फरमान जारी करना पड़ता है तो इसका अर्थ है कि सरकार अपना वह धैर्य चुक गया है जो उसे शासन चलाने के लिए आलाचनाओं, कार्टूनों और तरह-तरह के मजाक को बर्दाश्त की क्षमता देता है लेकिन पाकिस्तान में बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, यह भी कहा जा रहा है कि इन चुटकुलों और उसके लिए घोषित सजा की एक राजनीति भी है। जरदारी लंबे अर्से से बदनाम भले ही हों, लेकिन वे बहुत शातिर किस्म के राजनीतिज्ञ नहीं हैं। पिछले काफी समय से वे कुछ ऐसी बातें कह रहे हैं जो पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान, सेना और कट्टरपंथियों को पसंद नहीं आ रहीं। साथ ही एक दूसरी बात यह भी चल रही है कि किसी वक्त जरदारी की मेहरबानी से प्रधानमंत्री बने यूसुफ रजा गिलानी भी अब उन्हें आंखें दिखाने लगे हैं। उन्हें सार्वजनिक रूप से नीचा दिखाने का कोई मौका भी वे नहीं चूक रहे हैं। लेकिन आतंकवाद के चलते दुनिया और खासकर अमेरिका का दबाव ऐसा है कि जरदारी को हटाना शायद अभी सेना तक के लिए मुमकिन नहीं है। ऐसे में लगातार कोशिश यह चल रही है कि खुद जरदारी मजाक बनकर रह जएं। सजा की घोषणा करने वाले भी जानते हैं कि ऐसी घोषणा से चुटकुले बढ़ेंगे ही। पर बड़ा खतरा यह है कि मजाक पर पाबंदी लगाने वाली राज्यसत्ता कहीं खुद ही मजाक न बन कर रह जाए, नाकाम तो खैर वह मानी ही जाती है।