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सीटें बेचने को कॉलेजों ने तैनात किए प्रोफेशनल

उत्तर भारत के एजूकेशन हब के रूप में उभर रहे ग्रेटर नोएडा इंजीनियरिंग कालेजों में डोनेशन का गोरखधंधा खुलेआम हो रहा है। कुछ कालेजों का प्रबंधन तंत्र खुद सीटों की बिक्री के लिए मोलभाव कर रहा है तो कुछ...

सीटें बेचने को कॉलेजों ने तैनात किए प्रोफेशनल
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 20 Jul 2009 09:20 PM
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उत्तर भारत के एजूकेशन हब के रूप में उभर रहे ग्रेटर नोएडा इंजीनियरिंग कालेजों में डोनेशन का गोरखधंधा खुलेआम हो रहा है। कुछ कालेजों का प्रबंधन तंत्र खुद सीटों की बिक्री के लिए मोलभाव कर रहा है तो कुछ ने इसके लिए बाकायदा प्रोफेशनल तैनात कर रखे हैं, जो बाजार का रुख देखकर ब्रांच की कीमत तय करते हैं। एआईसीटीई और यूपीटीयू इन कालेजों के सामने बौनी साबित हो रही है।

ईसी, मैकेनिकल व सिविल इंजीनियरिंग की है जबरदस्त डिमांड  "ईसी ब्रांच" के लिए सीटों का भाव शहर के कॉलेजों में सर्वाधिक है। सिविल और मैकेनिकल ब्रांच की सीटों में प्रवेश को लेकर अभिभावकों से मोटी रकम ऐंठी जा रही है।

स्टिंग ऑपरेशन के बाद बच कर एडमिशन कर रहे हैं कॉलेज: तीन साल पहले स्टिंग आपरेशन की चपेट में आने के बाद मैनेजमेंट कोटे के प्रवेश बड़े गुपचुप तरीके से किए जा रहे हैं। सीटों के लिए मोबाइल फोन पर मोलभाव नहीं किया जा रहा है। प्रबंधन तंत्र भी आमने सामने बैठकर दाखिले की रकम नहीं बता रहा है। पर्ची पर लिखकर दूर से ब्रांच के अनुसार रकम दिखाई जाती है।


कोडवर्ड भी आ रहा है काम: मैनेजमेंट कोटे की सीटों पर प्रवेश देने के लिए कोड वर्ड में बात की जा रही है। मसलन सीएस के लिए दो किताबें और ईसी के लिए तीन किताबें चाहिए। इसका मतलब सौदा दो-दो लाख में तय हो रहा है। इसके अलावा सीटों के लिए टाइम कोड बना हुआ है। आईटी के लिए तीन बजे और सीएस में एडमिशन चाहिए तो ढाई बजे आकर मिलें। एक कालेज मिठाई और फलों की तोल बताकर डोनेशन की रकम तय की जा रही है। सिविल के लिए दो किलो मिठाई और मैकेनिकल के लिए तीन किलो फल चाहिए।

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