फोटो गैलरी

Hindi Newsहमलोग

हमलोग

हमलोग’ जैसा शो टीवी के परदे पर न कभी हुआ, न कभी आगे होगा। उस जैसा कुछ नहीं हो सकता। एक डायनामिक ऑफिसर (तत्कालीन सूचना प्रसारण सचिव एसएस गिल), एक शानदार लेखक (मनोहर श्याम जोशी), एक अद्भुत...

हमलोग
एजेंसीTue, 21 Jul 2009 09:35 PM
ऐप पर पढ़ें

हमलोग’ जैसा शो टीवी के परदे पर न कभी हुआ, न कभी आगे होगा। उस जैसा कुछ नहीं हो सकता। एक डायनामिक ऑफिसर (तत्कालीन सूचना प्रसारण सचिव एसएस गिल), एक शानदार लेखक (मनोहर श्याम जोशी), एक अद्भुत निर्देशक (पी कुमार वासुदेव)और बड़ी स्टारकास्ट। यह सब मिलकर एक बढिया टीम बनी थी। तब दूरदर्शन का एक उद्देश्य था। वह लोगों को शिक्षित करना चाहता था। उससे जुड़े लोग जानते थे कि वे क्या चाहते हैं। टीआरपी की बात नहीं थी। अब इंडस्ट्री में पे पुशस आ गए हैं और उनका मकसद सिर्फ पैसे कमाना है। उन्हें किसी दूसरी बात से क्या मतलब?

‘हम लोग’ अलग क्यों था? क्योंकि तब मूल्यों और सामाजिक बदलावों की बात की जाती थी। कुछ अच्छा सोचने वाले थे। कुछ अच्छा करने वाले थे। सब मिलकर समूह की तरह काम करते थे। अब वह बात नहीं रह गई है। किसी के अहम को तुष्ट करने के लिए काम किया जाता है।

‘हम लोग’ अलग क्यों था? चूंकि तब चेहरे नहीं देखे जाते थे। उनकी काबिलियत पर गौर किया जाता था। मुझे आज भी याद है, सीरियल में मेरी बीवी का रोल करने वाली जयश्री को मेकअप का बहुत शौक था। वह अक्सर ज्यादा मेकअप कर लिया करती थी। लेकिन हमारे निर्देशक इस बात का बहुत ध्यान रखते थे। वह जयश्री को टोक देते थे- अरे, यह तो ज्यादा ही हो गया। जाओ, और मुंह धोकर आओ। मैंने पूरे धारावाहिक में दो जोड़ी कपड़े ही पहने थे। वहां कोई धोने वाला नहीं था, सो उन्हें घर लाता था। धोता और प्रेस करता था और फिर शूटिंग पर ले जाता था। जो कुर्ता पायजामा पहनता था, वह मेरा ही था। बनियान भी मेरी थी। तो, इतने कम साधनों के बावजूद हम काम करते थे- तो डटकर काम करते थे। इसका नतीजा भी निकलकर आता था।

‘हम लोग’ इसलिए भी अलग था क्योंकि इसमें हमारे-आपके जैसे किरदार थे। न ये महात्मा होते थे, न गुंडे। आप इनसे प्यार करने लगते थे। लोग मुझसे अब भी प्यार करते हैं। अब भी मुझे कहीं, किसी लाइन में नहीं खडम होना पड़ता। लोग मुझे बसेसर राम के नाम से पुकारते और पहचानते हैं। सीरियल खत्म होने के बाद एक बार मैं अपनी बीवी कविता, जो सीरियल में मेरी मिस्ट्रेस बनी थीं, के साथ हिसार गया। वहां एक होटल में रुका। अगले दिन हमारी खिड़की के बाहर भीड़ लगी थी- लोग कह रहे थे, देखो बसेसर, संतो को भगा लाया। एक बार मुङो कानपुर में एक शख्स मिला, जो बिल्कुल बसेसर राम की तरह लगता था। उसने बसेसर की तरह का चश्मा बनाया हुआ था। वह चाय पान की दुकान करता था। उसी की तरह गाता भी था।

हम लोग भले ही ‘हम लोग’ को याद करते हों, लेकिन खुद दूरदर्शन उसे भूल चुका है। यहां तक कि उसके टेप्स भी नौकरशाही की भेंट चढ़ चुके हैं। हमारे यहां ब्यूरोक्रेसी का यही हाल है। यहां कायदा है कि नए अधिकारी आकर, पहले के अधिकारियों के किए काम को बर्बाद करते हैं। हम लोग नौकरशाहों की दुर्भावना का शिकार हुआ है।

अब मैं टीवी नहीं कर सकता। यहां सिर्फ एक्सप्रेशंस बिकते हैं। आप कोई भी धारावाहिक देखिए। उनमें हर एंगल से एक्सप्रेशंस कैप्चर किए जाते हैं और उन्हीं को बेचा जाता है। मैं फिल्में करता हूं और नए लड़के-लडकियों के साथ काम करता हू्। फिलहाल निर्देशक चंदन अरोडम, जो कि मेरे पुराने जानने वाले हैं, एक स्क्रिप्ट पर काम कर रहे हैं। इसमें वह मुझे कास्ट करना चाहते हैं। उनकी पहले की फिल्मों ‘मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं’ और ‘मैं मेरी पत्नी और वो’ में भी मैं काम कर चुका हूं।

सुषमा सेठ (दादी)
‘हम लोग’ से पहले मैं फिल्में कर चुकी थी। जब हम लोग में दादी का किरदार निभाने की बात हुई तो निर्देशक पी वासुदेव ने कहा- मैं दादी के लिहाज से कम उम्र की लगती हूं। मैंने तब मुंबई से विग मंगाया। अपनी मां की साडि़यां पहनीं और अपना मेकअप खुद किया। जब शूट पर यह सब करके, पहुंची तो वासुदेव चकित रह गए। हम लोग मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी थी। लोग मुझसे इतना प्यार करते थे, कि रास्ते में रोककर सवाल कर लेते थे। इतनी लोकप्रियता तो मुझे फिल्मों से भी नहीं मिली थी।
आजकल सुषमा दिल्ली में रहती हैं। यहां बच्चों के साथ थियेटर वर्कशॉप करती हैं।

लवलीन मिश्रा (छुटकी)
मैं अपने समूह में सबसे छोटी थी। सभी का प्यार मुझे मिलता था और लोग डायलॉग याद करने में भी मेरी मदद करते थे। इसके बाद भी मैंने बहुत काम किया लेकिन ‘हम लोग’ की बात ही कुछ और थी। जो पहचान मुझे इससे मिली, वह दूसरे किसी काम से नहीं। ‘हम लोग’ देखने वाले लोग मुझसे कितना प्यार करते थे, यह उनकी चिट्ठियों से मालूम चलता था। क्या अब कोई ऐसा कोई धारावाहिक बना सकता है?

आजकल लवलीन मुंबई में रहती हैं। उनके पति मनोज सिक्का साउंड डिजाइनर हैं। दोनों का एक बेटा है अवि। इस समय लवलीन नसीरुद्दीन शाह के थियेटर ग्रुप मोटले से जुड़ी हुई हैं।

जयश्री अरोड़ा (भागवंती)
मैं भागवंती जैसी नहीं थी लेकिन दर्शक मुझे वैसी ही समझते थे। पति जिसे सताता हो और वह रोती रहती हो। ‘हम लोग’ ने मेरी एक ऐसी छवि बनाई कि उसे तोड़ना मुश्किल हो गया। इसके बाद मैंने ‘चंद्रकांता’ जैसे सीरियल में काम किया।आजकल जयश्री अरोड़ा कलर्स के सीरियल ‘मेरे घर आई एक नन्ही परी’ में दादी गुनीता चावला की भूमिका निभा रही हैं।

सीमा भार्गव (बड़की)
‘हम लोग’ एक फिनोमेना था, इसके रियल लाइफ कैरेक्टर्स की वजह से। मुझे आज भी याद है कि रात को अक्सर लडकियां मुझे फोन करके अपनी समस्याएं बताने की कोशिश करती थीं। उन्हें लगता था कि बड़की नहीं, खुद सीमा भार्गव ही समाज सेवा करती है। बाद में धारावाहिक के अंत में यह बताना पड़ता था कि अपनी समस्याओं के लिए दर्शक बड़की को फोन न करें। इसके लिए महिला कल्याण संस्थाएं और दूसरे एनजीओज काम करते हैं। आज मैं बड़की जैसी नहीं। बहुत बदल गई हूं। फिर भी लोग, कई बार अनजान लोग भी मुझसे पूछ लेते हैं कि क्या मैं ही बड़की थी?

आजकल सीमा भार्गव ने ‘हम लोग’ में टोनी का किरदार निभाने वाले मनोज पाहवा से शादी की थी। दोनों मुंबई में रहते हैं। सीमा थियेटर करती हैं- गाहे बगाहे धारावाहिक भी। नसीरुद्दीन शाह के नाट्य समूह से जुड़ी हुई हैं। कुछ समय पहले तक सोनी के धारावाहिक ‘हम लड़कियां’ में दादी का रोल कर रही थीं।

दिव्या सेठ (मंझली)
‘हम लोग’ हमारे लिए एक फैमिली गेट टुगेदर था। वहां हम हमेशा ऐट ईज होते थे। ऑडियंस को भी यह महसूस होता था कि हम कितना कंफर्टेबली वहां काम करते हैं। यह हमारी ऑन स्क्रीन से पता चलता था। हम सब एक ही एज ग्रुप के थे, इसलिए हम सब मजे-मजे में काम कर लिया करते थे। ‘हम लोग’ से पहले मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि इसकी पॉपुलैरिटी का यह रेशो होगा। मंझली का मेरा कैरेक्टर अपने समय से आगे का कैरेक्टर था। सपने देखने वाली लड़की का कैरेक्टर, लेकिन गलत रास्ते पर चलकर उसका हाल बुरा होता है। ‘हम लोग’ के बाद मैंने कई धारावाहिक किए ‘अधिकार’, ‘दरार’, ‘अपमान’, ‘राजनीति’, लेकिन मंझली जैसा कैरेक्टर नहीं मिला।

आजकल दिव्या घर-परिवार में व्यस्त हैं। पुणे में पति सिद्धार्थ शाह के साथ रहती हैं। उनकी एक बेटी है मिहिका।

राजेश पुरी (लल्लू)
‘हम लोग’ ने हमें स्टार बनाया था। एक बार स्मिता पाटिल ने मुझसे कहा था कि ‘हम लोग’ के कलाकार फिल्म स्टार्स से भी ज्यादा लोकप्रिय हैं। यह सुनकर मुझे कितना अच्छा लगा था, बता नहीं सकता। उनके और राज बब्बर की वजह से  ही मैं दिल्ली से मुंबई आया था। यहां भी लोग मुझे पहचानते थे। बहुत से तो यह भी सोचते थे कि लल्लू की तरह मैं भी आईएएस ऑफिसर हूं और ऊषा रानी सचमुच मेरी बीवी है। आजकल राजेश मुंबई में रहते हैं। ‘हम लोग’ के बाद उन्होंने बहुत सी फिल्मों में काम किया। ‘भाभी’ जैसे सीरियल का निर्देशन भी किया। इस समय वह सब टीवी पर ‘गन वाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में अभिनय कर रहे हैं और उसका निर्देशन भी कर रहे हैं।

अभिनव चतुर्वेदी (नन्हे)
‘हम लोग’ की लोकप्रियता के बारे में ज्यादा क्या कहूं? इसने हमें फिल्म स्टार्स से ज्यादा लोकप्रिय बनाया था। आज भी लोग मुझे नन्हे कहकर बुलाते हैं। वे दिन मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे दिनों में शुमार थे। इसके बाद ‘स्टार एंड स्टाइल’ ने मुझे सम्मानित किया था। इसके बाद मैं लॉस एंजिलिस में मनोरंजन उद्योग पर आयोजित एक कांफ्रेंस में भी गया था।आजकल अभिनव दिल्ली में रहते हैं। उनकी प्रोडक्शन कंपनी है, एवी नेटवर्क प्राइवेट कंपनी।

मनोज पाहवा (टोनी)
‘हम लोग’ में मेरा किरदार 10 से 15 एपीसोड का ही था लेकिन लोग मुझे पहचानने लगे थे। इसके बाद मंझली मेरी हत्या कर देती है। मेरा काम खत्म हुआ तो पैसे मिलने भी बंद हो गए। एक दिन जोशी जी ने मुझे देखा तो मेरा हाल-चाल पूछा। मैंने बताया कि मैं बेरोजगार हो गया हूं। तब उन्होंने मुझे सेट पर बुलाया और मुझसे जोर-जोर से हंसने को कहा। मेरी आवाज रिकार्ड की गई और मुङो इसके लिए पैसे दिए गए। बाद में मेरी इस आवाज का इस्तेमाल किया गया। जोशी जी बहुत प्यारे इन्सान थे। ‘हम लोग’ के बाद मैंने टीवी पर खूब काम किया। ‘ऑफिस ऑफिस’ और ‘लाइफ आउट ऑफ कंट्रोल’ मेरे पॉपुलर सीरियल थे।

आजकल मनोज पाहवा अपनी पत्नी सीमा (जी वही ‘हम लोग’ की बड़की) के साथ मुंबई में रहते हैं। थियेटर और फिल्में करते हैं। हाल ही में उनकी एक फिल्म ‘संकट सिटी’ रिलीज हुई है।

 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें