समलैंगिकता के मुद्दे पर सरकार असमंजस में
समलैंगिकता के मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले से केंद्र सरकार असमंजस में है। उच्चतम न्यायालय ने सरकार से इस बाबत अपना रुख साफ करने के लिए कहा था, लेकिन दस दिनों बाद भी इस बारे में कोई जवाब...
समलैंगिकता के मुद्दे पर दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले से केंद्र सरकार असमंजस में है। उच्चतम न्यायालय ने सरकार से इस बाबत अपना रुख साफ करने के लिए कहा था, लेकिन दस दिनों बाद भी इस बारे में कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है।
मामले में उच्चतम न्यायालय में पेश होने वाले एटॉर्नी जनरल जीई वाहनवति ने कहा कि न्यायालय में कोई हलफनामा नहीं दाखिल किया गया है। देखना होगा कि अदालत में क्या होता है। उन्होंने कहा कि सोमवार को न्यायालय में क्या होगा इसके लिए आपको इंतजार करना होगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर समाज के अलग-अलग तबकों, सभी समुदायों के धार्मिक नेताओं और बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन द्वारा विरोध जताए जाने के बाद सरकार अपना रुख अभी तक तय नहीं कर पाई है।
उधर, समलैंगिकता के पैरोकारों ने इस फैसले के बचाव की रणनीति तय कर ली है। गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन की वकील शिवांगी राय ने कहा कि शीर्ष अदालत में अपीलों को स्वीकार कर लिए जाने के बाद हम जवाब दाखिल करेंगे।
गौरतलब है कि नाज फाउंडेशन की याचिका पर ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिकों के लिए दंडात्मक प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया था। फैसले के बाद एकांत में आपसी सहमति से संबंध बनाने वाले समलैंगिक धारा 377 (आईपीसी) के दायरे से बाहर हो गए।
उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर इस मुद्दे पर अपना एक साफ करने के लिए कहा है। प्रधान न्यायाधीश केजी बालकृष्णन के नेतृत्व वाली एक पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी।
पिछली तारिख पर पीठ ने कहा था कि संबद्ध पक्षों को सुनने के बाद अगर जरूरी हुआ तो ही उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अंतरिम आदेश देने पर विचार किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने नाज फाउंडेशन सहित उन सभी मामले से जुड़ी उन सभी पार्टियों को नोटिस जारी किया है जो उच्च न्यायालय में भी इसके पक्षकार थे।