केन्द्रीय करों में हिस्सेदारी घटी, बिहार को 5497 करोड़ रुपये की चपत
केन्द्रीय करों में कटौती से बिहार पर कर्ज संकट गहराने लगा है। केन्द्र सरकार इस वर्ष राज्य को 5497 करोड़ रुपये कम देगी। यह राशि केन्द्रीय करों का हिस्सा है। कटौती का सीधा असर विकास योजनाओं पर पड़ेगा।...
केन्द्रीय करों में कटौती से बिहार पर कर्ज संकट गहराने लगा है। केन्द्र सरकार इस वर्ष राज्य को 5497 करोड़ रुपये कम देगी। यह राशि केन्द्रीय करों का हिस्सा है। कटौती का सीधा असर विकास योजनाओं पर पड़ेगा। इससे विकास योजनाओं के भी प्रभावित होने के आसार हैं।
संकट टालने के लिए बिहार सरकार और अधिक कर्ज लेने की तैयारी कर रही है। इसके लिए केन्द्र से इजाजत मांगी गयी है। फिलहाल कर्ज की सीमा 7061 करोड़ रुपये ही है। शुक्रवार को विधानसभा में रामदेव वर्मा के प्रश्न पर राज्य की आर्थिक स्थिति की सच्चई सामने आ गयी।
उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की जुबान से हकीकत जानकर सदन सकते में पड़ गया। उपमुख्यमंत्री ने बताया कि विकास की गतिविधियों को देखते हुए बिहार को और अधिक राशि की जरूरत है। चालू वित्तीय वर्ष में केन्द्रीय करों से बिहार को 23650 करोड़ रुपये मिलने थे। केन्द्र ने पहले 18909 करोड़ रुपये देने की रजामंदी जतायी लेकिन अब 18153 करोड़ रुपये ही देने को तैयार है।
श्री मोदी ने कहा कि केन्द्र सरकार खुद भी प्रत्येक सप्ताह 15 हजार करोड़ रुपये कर्ज ले रही है। इसलिए हमने भी यह मांग की है कि बिहार को इस वर्ष 7061 करोड़ रुपये से अधिक कर्ज लेने की इजाजत दी जाए। उपमुख्यमंत्री ने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष में 13500 करोड़ रुपये के योजना आकार को घटाकर 12000 करोड़ रुपये कर दिया गया था।
इसकी तुलना में मार्च,09 तक 12514 करोड़ 33 लाख रुपये खर्च किये गये। उन्होंने बताया कि वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में कुल आवंटित राशि का 10 प्रतिशत खर्च होता है। इसी प्रकार दूसरी तिमाही में 20 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 30 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 40 प्रतिशत राशि खर्च होती है।