दाद-खुजली
रिंगवर्म या दाद, लाल सुर्ख गोल घेरे के रूप में उभरने वाली त्वचा की आम समस्या है। बरखा ऋतु के साथ तो मानो इसका आना तय है। यह कुछ खास जातियों के फफूंद से पैदा होने वाला रोग है। ये फफूंद टीनिया...
रिंगवर्म या दाद, लाल सुर्ख गोल घेरे के रूप में उभरने वाली त्वचा की आम समस्या है। बरखा ऋतु के साथ तो मानो इसका आना तय है। यह कुछ खास जातियों के फफूंद से पैदा होने वाला रोग है। ये फफूंद टीनिया माइक्रोस्पोरम और केंडिडा हैं, जिनकी कई प्रजातियाँ हैं। इनके त्वचा की बाहरी तह पर उगने से ही दाद होती है।
नाम रगवर्म ही क्यों : दाद की यह खास पहचान है कि त्वचा पर छपा उसका गोल लाल रंग का घेरा जब आकार में बढ़ता है, तो उसके अंदर का हिस्सा साफ होता जाता है। उसके इसी व्यवहार को देख उसे रगवर्म नाम दे दिया गया।
कैसे होता है दाद : दाद के किसी मरीज के संपर्क में आने से या हवा के साथ उड़कर आए फफूंद के कणों से दाद किसी भी भले-चंगे व्यक्ति को लग सकती है। दाद से परेशान पालतू जीवजंतुओं के साथ खेलने से भी ये रोग हो सकता है। कुत्ते, बिल्ली, घोड़े, गाय और भैंस सभी को दाद हो सकती है। सिर की खाल की दाद में किसी संगी-साथी की कंघी और हेयरबैंड से भी फफूंद दूसरे में फैल सकता है। तौलिया, जुराब, अंतर्वस्त्र आपस में इस्तेमाल करना भी खतरे से खाली नहीं। इसी तरह नमी और उमस भरे स्थानों में फफूंद खूब मजे में रहता है। अत: स्वीमिंग पूल और सार्वजनिक स्नानघरों का प्रयोग करने के बाद दाद के पांव पड़ने का योग बढ़ जाता है।
कहां-कहां रंग दिखाए : शरीर का कोई भी अंग दाद से छूट नहीं सकता। मगर जिस्म के जिन हिस्सों में पसीना अधिक जमा रहता है और खाल रगड़ खाती रहती है, वहां दाद होने की अधिक संभावना होती है। जांघ, बगल, गर्दन और पैर की अंगुलियों के बीचोंबीच दाद सबसे अधिक होती है। सिर की खाल की दाद बच्चों में होती है। कुछ में यह नाखूनों में भी हो जाती है। वे अपनी चमक खो देते हैं, मोटे और खुरदुरे होकर आसानी से टूट जते हैं। जारी..