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रिजर्व मुद्रा के रूप में डॉलर अभी चलता रहेगाः सुब्बाराव

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि डॉलर वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में अभी चलता रहेगा। अमेरिकी मुद्रा डॉलर के बदले किसी अन्य मुद्रा को वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में मान्यता...

रिजर्व मुद्रा के रूप में डॉलर अभी चलता रहेगाः सुब्बाराव
एजेंसीSat, 11 Jul 2009 08:53 PM
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भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा है कि डॉलर वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में अभी चलता रहेगा।

अमेरिकी मुद्रा डॉलर के बदले किसी अन्य मुद्रा को वैश्विक रिजर्व मुद्रा के रूप में मान्यता देने की बहस के बीच सुब्बाराव ने लंदन के सेन्ट्रल बैंकिंग पब्लिकेशन्स से एक साक्षात्कार में कहा कि मैं नहीं मानता कि इस समय कोई अन्य मुद्रा है जो डॉलर का स्थान ले सकती है।

उन्होंने कहा कि फिएट डालर का स्थान नहीं ले सकता है यह वैकल्पिक मुद्रा की मजबूती से ही होगा। सुब्बाराव ने कहा कि उन्होंने वैश्विक और उभरती अर्थव्यवस्था के लिए वैश्विक मुद्रा के विकल्प और इसकी दिक्कतों के संबंध में हो रही बहस का अध्ययन किया है।

चीन जैसे देशों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के शक्ति संतुलन के बदलने को प्रतिबिंबित करने के लिए जी 8 देशों के सम्मेलन में डालर के स्थान पर नई वैश्विक रिजर्व मुद्रा पर बहस का आह्वान किया था। सुब्बाराव ने कहा कि न्यूनतम स्वीकार्य कार्यक्रम पर पहुंचने के लिए इस मसले पर बहस के लंबी खिचने के आसार हैं। भारत के विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने कहा है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था इस प्रस्ताव पर बहस की इच्छुक है।

सुब्बाराव ने कहा कि रिजर्व बैंक के समक्ष मूल्य और वित्तीय स्थिरता के बीच नौ प्रतिशत विकास दर के लिए माहौल बनाने की चुनौती है। उन्होंने कहा कि देश को बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। भारत की आर्थिक विकास दर 2008-09 में 6.7 प्रतिशत रही है। इससे पूर्व लगातार तीन वर्षों तक यह दर नौ प्रतिशत थी।


सुब्बाराव ने कहा कि रिजर्व बैंक के लिए मुद्रास्फीति नियंत्रित करना न तो संभव है और न ही उपयुक्त है क्योंकि मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं। उन्होंने कहा कि आयात मूल्य मुद्रास्फीति को बढ़ा सकते हैं पूंजी प्रवाह मुद्रा स्फीति पर प्रभाव डाल सकता है और दूसरे केन्द्रीय बैंकों के निर्णय भी मुद्रास्फीति के कारक हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि कृषि उत्पादों के मूल्य मानसून और मौसम की वजह से घटते-बढ़ते हैं।

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