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गावस्कर ने दी कंपलीट ओपनर की परिभाषा

पिच पर किसी योगी की तरह ध्यान लगाकर बल्ले की कलम से कामयाबी की गाथा लिखने वाले सुनील गावस्कर के करीबी साथियों की राय में इस लिटिल मास्टर जैसा दूसरा ओपनर बल्लेबाज अब शायद ही कभी पैदा हो। क्रिकेट की...

गावस्कर ने दी कंपलीट ओपनर की परिभाषा
एजेंसीThu, 09 Jul 2009 04:26 PM
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पिच पर किसी योगी की तरह ध्यान लगाकर बल्ले की कलम से कामयाबी की गाथा लिखने वाले सुनील गावस्कर के करीबी साथियों की राय में इस लिटिल मास्टर जैसा दूसरा ओपनर बल्लेबाज अब शायद ही कभी पैदा हो।

क्रिकेट की जीवित किंवदन्ती और दुनिया के महान ओपनिंग बल्लेबाजों में शुमार सुनील गावस्कर ने विश्व क्रिकेट को एक सम्पूर्ण सलामी बल्लेबाज की परिभाषा दी। गावस्कर के बाद भारत में कई और महान खिलाड़ी हुए लेकिन भारत उनके जैसा दूसरा ओपनिंग बल्लेबाज आज तक हासिल नहीं कर सका।

मुंबई की गलियों में क्रिकेट का ककहरा सीखने वाले गावस्कर ने विश्व क्रिकेट पर खौफनाक तेज गेंदबाजों के दबदबे के बीचसाहस और सटीक तकनीक की बदौलत दुनिया के दीगर बल्लेबाजों के सामने एक उदाहरण रखा और टेस्ट क्रिकेट में दस हजार रनों के एवरेस्ट को सबसे पहले छुआ। एक सफल खिलाड़ी, कप्तान और फिर क्रिकेट प्रशासक के रूप में गावस्कर ने दुनिया में भारतीय क्रिकेट को अलग पहचान दिलाई।

क्रिकेट जगत में लिटिल मास्टर और सनी के नाम से मशहूर गावस्कर के सबसे सफल ओपनिंग जोड़ीदार रहे चेतन चौहान की नजर में गावस्कर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अब तक के सर्वष्ठ ओपनर हैं। चौहान ने कहा कि वह गावस्कर को गॉर्डन ग्रीनिज, ज्योफ्री बॉयकॉट और डेसमेंड हेंस जैसे महान टेस्ट ओपनरों से भी ऊपर का दर्जा देते हैं।

साथी ओपनर के रूप में दूसरे छोर पर खड़े होकर गावस्कर की सम्पूर्णता को बारीकी से देख चुके चौहान ने बताया कि सनी की सफलता का राज उनके फौलादी इरादे थे। उनकी ठोस तकनीक, अविश्वसनीय धैर्य और किसी योगी जैसी ध्यान शक्ति उन्हें मैदान पर लंबे वक्त तक टिकने में मदद करती थी। गावस्कर और चौहान की जोड़ी ने 36 टेस्ट मैचों में ओपनिंग की और 54.85 की औसत से 3127 रन बनाए। इसमें 11 शतकीय और 10 अर्धशतकीय साझेदारियां शामिल हैं।

दस जुलाई 1949 को मुंबई में जन्मे गावस्कर ने 125 टेस्ट मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने 214 पारियों में 51.12 की औसत से 10122 रन बनाए। इनमें 34 शतक और 45 अर्धशतक शामिल हैं। उनका सर्वष्ठ स्कोर नाबाद 236 रन था जो उन्होंने वर्ष 1983 में चेन्नई में बनाया था।

टेस्ट ओपनर के रूप में गावस्कर की विलक्षण प्रतिभा का जिक्र करते हुए उनके एक और साथी खिलाड़ी मदन लाल ने कहा कि लिटिल मास्टर जैसे खिलाड़ी बिरले ही पैदा होते हैं। शायद यही वजह है कि भारत उनके जैसा दूसरा ओपनर आज तक ढूंढ़ नहीं पाया। अपने जमाने के इस मशहूर ऑलराउण्डर ने कहा कि मेरे ख्याल से गावस्कर जैसा दूसरा ओपनर तैयार करना मुमकिन भी नहीं है, क्योंकि ऐसे खिलाड़ी तैयार नहीं किए जा सकते। कप्तान के तौर पर गावस्कर की खूबियों के बारे में लाल ने कहा कि वह सूझ—बूझ वाले कप्तान थे और टीम को अपने प्रदर्शन से प्रेरणा देते थे।

वर्ष 1980—81 में मेलबर्न टेस्ट में ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज डेनिस लिली की गेंद पर खुद को पगबाधा आउट दिए जाने के बाद कप्तान गावस्कर द्वारा कड़ा विरोध किए जाने की घटना को उनके करियर का सबसे अजीबोगरीब वाकया माना जाता है। इस बारे में पूछे जाने पर मदन लाल ने कहा कि गावस्कर ने कड़ा विरोध करने और अपने साथी ओपनर चेतन चौहान को जबरन अपने साथ ले जाने की कोशिश आवेश में आकर की थी। लाल ने कहा कि उस वक्त तकनीक इतनी विकसित नहीं थी और अपना विकेट संभाल कर रखने की कोशिश में जुटे गावस्कर को लगता था कि वह आउट नहीं हैं।


टेस्ट मैचों में गावस्कर के साथ भारत के लिए बेहद सफल जोड़ी बनाने वाले चौहान ने कहा कि खुद पर अटूट विश्वास गावस्कर की सबसे बड़ी ताकत थी। बकौल चेतन, गावस्कर जैसा दूसरा बल्लेबाज उनकी नजर से अब तक नहीं गुजरा है। गावस्कर ने वर्ष 1971 में वेस्टइंडीज के खिलाफ अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की थी और अपने पहले ही सत्र में उन्होंने चार शतक ठोंकते हुए 83.45 की औसत से 918 रन बनाकर विश्व क्रिकेट पर दस्तक दे दी थी। उस वक्त विंडीज के तेज गेंदबाजों से बल्लेबाजों की रूह कांपती थी लेकिन कभी भी हेलमेट और थाईपैड का इस्तेमाल नहीं करने वाले गावस्कर ने अपनी क्लास साबित करते हुए इस कैरिबियाई टीम के खिलाफ ही सबसे ज्यादा 13 शतक ठोंके।

गावस्कर ने इंग्लैंड के खिलाफ आठ, पाकिस्तान के विरुद्ध पांच, इंग्लैंड के खिलाफ चार और न्यूजीलैंड तथा श्रीलंका के खिलाफ दो—दो शतक जमाए। उन्होंने भारत और विदेश में समान रूप से बेहतरीन प्रदर्शन किया।

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