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पंचमहाभूतों पर वास्तु का प्रभाव

भूमि- प्रत्येक उस स्थान या घर में पृथ्वी का पर्याप्त समावेश होना आवश्यक है जिसमें हम रहते हैं। जो भाग कमरों के निर्माण से घिर जाता है, वहां पृथ्वी नहीं रहती है, इसलिए निर्माण करते समय भूखण्ड में अधिक...

पंचमहाभूतों पर वास्तु का प्रभाव
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 04 Jul 2009 12:46 PM
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भूमि- प्रत्येक उस स्थान या घर में पृथ्वी का पर्याप्त समावेश होना आवश्यक है जिसमें हम रहते हैं। जो भाग कमरों के निर्माण से घिर जाता है, वहां पृथ्वी नहीं रहती है, इसलिए निर्माण करते समय भूखण्ड में अधिक से अधिक खुला स्थान छोड़ना चाहिए और इस खुले स्थान में भी लॉन, पेड़-पौधों, फल, हरियाली इत्यादि होनी चाहिए, जिससे हम पृथ्वी से कटे नहीं। जो मनुष्य पृथ्वी के जितना अधिक सम्पर्क में रहता है वह उतना ही अधिक तन मन, आत्मा से स्वस्थ रहता है। खुले में बैठने, खाना खाने व सोने से अधिक ऑक्सीजन मिलती है और नींद भी अच्छी आती है।

जल:- इसके बिना निर्माण कार्य असंभव है। जैसे हमारी पृथ्वी पर कुल धरातल का 70 प्रतिशत भाग पानी है। उसी प्रकार मानव शरीर में भी 70 प्रतिशत भाग पानी रहता है। इसी तरह घर में भी 70 प्रतिशत भाग पानी की उपलब्धता रहनी चाहिए।

रसोई, स्नानागार, लॉन, बेसिन इत्यादि में पानी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए और पानी 24 घण्टे उपलब्ध रहे, इसके लिएओवरहैड टंकी बनवानी चाहिए। घर में जल का स्त्रोत ईशान उत्तर-पूर्व दिशा से आना चाहिए और उपयोग के पश्चात उसी दिशा में वापिस जाना चाहिए। भवन के फर्श का ढाल भी उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए।

अग्नि- अग्नि अर्थात् ऊर्जा के बिना कुछ भी संभव नहीं है भवन का प्रत्येक भाव ऊर्जावान या ऊर्जादायक होना चाहिए ताकि घर में निवास करने वाले सभी ऊर्जा से ओत-प्रोत हो। अग्नि ही मानव शरीर को जीवित रखती है। उसी प्रकार घर में भी अग्नि तत्व के प्रवेश की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। घर के हर कोने में सूर्य की किरणों पूर्णमात्रा में प्रवेश करे ताकि घर में नमी न रहे जिससे कीटाणु पैदा न हो एवं हम रोग रहित जीवन-यापन कर सकें। वैसे अग्नि व ताप संबंधी संयंत्रों का स्थान आग्नेय एस-ई कोण में निर्धारित किया हुआ है किन्तु घर के प्रत्येक कोने में सूर्य का प्रकाश अवश्य पहुंचना चाहिए।

वायु- वायु सृष्टि के अस्तित्व के लिए आवश्यक तत्व है। इसके अभाव में किसी भी सजीव वस्तु की परिकल्पना असंभव है। घर में सभी दिशाओं से वायु प्रवेश होना चाहिए, तभी घर का वातावरण शुद्घ रह सकेगा। घर में हवा के आगमन हेतु वायव्य कोण एन-डब्ल्यू निर्धारित हैं किन्तु यह तो हो नहीं सकता कि घर में हवा का प्रवेश सिर्फ इसी दिशा से हो। स्थान व समयानुसार हवाएं अपना रुख बदलती रहती है फिर हवा जिधर से घर में प्रवेश करती हैं, उसी दिशा से बाहर नहीं निकलती हैं, अतएव सभी दिशाओं में खिड़कियां एवं रोशनदान रखने चाहिए।

आकाश- आकाश का अर्थ रिक्तता या खुलेपन से है जो पृथ्वीतल से आरंभ होकर अनंत तक फैला हुआ है। घर के लिएभी आकाश की सबसे अधिक अहमियत है। वस्तुत: आकाश घर के प्रत्येक कमरे व कोने में विद्यमान रहता है। जहां प्रकाश है वहीं आकाश है। सूर्य के प्रकाश से अल्ट्रावॉयलेट किरणों निकलती हैं जिनसे बैक्टीरिया खत्म होते हैं और वायरस निष्क्रिय होते हैं जो स्वस्थ रहने के लिए आवश्चक हैं। घर के चारों ओर खुला स्थान इस प्रकार छोड़ा जाना चाहिए कि अधिक से अधिक दिखाई दे, ब्रह्म स्थल का मतलब है घर के बीचों बीच जहां तक संभव हो छोटा-मोटा खुला चौक छोड़ना चाहिए, ताकि सूर्य की किरणों चौक के माध्यम से घर में प्रवेश कर सकें।

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