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यूपी की सियासत में होगी खूब हलचल! --लिब्राहन की रिपोर्ट के मायने

करीब दो दशक पहले उत्तर प्रदेश की सियासत की दिशा बदलने वाला बाबरी मस्जिद मुद्दा फिर उभरा है। सत्रह साल की कवायद के बाद आखिर लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में क्या है इसका खुलासा...

यूपी की सियासत में होगी खूब हलचल! --लिब्राहन की रिपोर्ट के मायने
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 30 Jun 2009 08:21 PM
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करीब दो दशक पहले उत्तर प्रदेश की सियासत की दिशा बदलने वाला बाबरी मस्जिद मुद्दा फिर उभरा है। सत्रह साल की कवायद के बाद आखिर लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में क्या है इसका खुलासा यूपी की राजनीति पर खूब असर डालेगा यह तय है। राजनीतिक दलों व कुछ राजनीतिक व्यक्तियों के लिए इसके खासे मायने होंगे।

बाबरी मुद्दे को पूँजी बना कर भाजपा ने यूपी में भरपूर सियासी फसल काटी थी। वक्त के साथ मुद्दा ठंडा पड़ा तो भाजपा भी नीचे उतरी। लोकसभा चुनाव के नतीजे उसकी ताजा बानगी हैं। राम मन्दिर अब मुद्दा नहीं रहा, यह यूपी के राजनीतिक विश्लेषक मानने लगे हैं लेकिन अगर लिब्राहन आयोग ने बाबरी विध्वंस के लिए भाजपा के चोटी के नेताओं को जिम्मेदार ठहराया हो तो इसे मुद्दा बनाने में भाजपा शायद ही देर करेगी।

नब्बे के दशक वाली धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति उसके लिए हमेशा फायदेमंद रही है। लिहाज यूपी में खोया जनाधार वापस पाने की ललक सँजोए बैठी भाजपा को लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट से जरूरी सियासी खुराक मिल सकती है। रिपोर्ट के खासे मायने कांग्रेस के लिए भी हैं। रिपोर्ट और उस पर जरूरी कार्रवाई या उसकी घोषणा के जरिए कांग्रेस मुस्लिम वोटरों में अपनी स्थिति और मजबूत करने का मौका गँवाने से रही।

बाबरी विध्वंस के बाद मुसलमानों ने कांग्रेस से मुँह फेर लिया था। नतीजतन कांग्रेस यूपी में साफ हो गई थी। डेढ़ दशक के लंबे वनवास के बाद मुसलमान फिर कांग्रेस के बारे में सोचने लगा है। लोकसभा चुनाव के नतीजे गवाह हैं। लिहाज लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के जरिए कांग्रेस अपना खोया जनाधार और समेटने की पूरी कोशिश जरूर करेगी।

रिपोर्ट के खास मायने सत्तारूढ़ बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के लिए भी हैं। आयोग की रिपोर्ट के बहाने सूबे में अगर ध्रुवीकरण वाली राजनीति फिर पनपी तो बसपा मुसलमानों की असली चैंपियन के रूप में खुद को प्रोजेक्ट करने का हर जतन करेगी। वहीं आयोग की रिपोर्ट के बहाने भाजपा के किसी संभावित उभार की स्थिति में नब्बे के दशक की तर्ज पर मुसलमान फिर मौलाना मुलायम के साथ ही खड़ा होगा ऐसा विश्वास सपाइयों को अभी भी है। 

आयोग की रिपोर्ट पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण ¨सह के लिए भी खासे मायने रखती है। बाबरी विध्वंस के वक्त कल्याण भाजपा में थे और यूपी के मुख्यमंत्री। अब सपा के दोस्त हैं। ऑन रिकार्ड बोल चुके हैं कि बतौर मुख्यमंत्री वे बाबरी मस्जिद का विध्वंस नहीं रोक पाए। माफी भी माँग चुके हैं। आयोग के सामने श्री ¨सह भी कई बार पेश हो चुके हैं। आयोग उन्हें चिट देता है या नहीं यह उनके और सपा से उनकी दोस्ती का भविष्य भी तय कर देगा।

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