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बीज विधेयक के खिलाफ विशेषज्ञों ने उठाए सवाल

प्रस्तावित बीज विधेयक पर कई गंभीर आशंकाएं जहिर करते हुए देश के कुछ प्रमुख कृषि वैज्ञानिकों और किसान संगठनों का कहना है कि प्रस्तावित कानून से बीजों पर देश किसानों का परंपरागत अधिकार कमजोर हो जाएगा और...

बीज विधेयक के खिलाफ विशेषज्ञों ने उठाए सवाल
एजेंसीMon, 29 Jun 2009 04:46 PM
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प्रस्तावित बीज विधेयक पर कई गंभीर आशंकाएं जहिर करते हुए देश के कुछ प्रमुख कृषि वैज्ञानिकों और किसान संगठनों का कहना है कि प्रस्तावित कानून से बीजों पर देश किसानों का परंपरागत अधिकार कमजोर हो जाएगा और स्थानीय बीज बाजार बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों के हाथ में चला जाएगा।

किसान संगठन, भारतीय कृषक समाज (बीकेएस) का कहना है कि प्रस्तावित बीज कानून केवल उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के व्यावसायिक हितों की रक्षा करेगा जो अभियांत्रिक अनुवांशिक तकनीक से तैयार (जीएम) बीजों को देश पर थोपना चाहती हैं। संगठन के अध्यक्ष डा़ कृष्णबीर चौधरी ने कहा कि सरकार की इस पहल से बीजों का मनचाहा प्रयोग करने की किसानों की स्वतंत्रता खत्म होगी और देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जायेगी।

फोरम फार बायोटेक्नोलाजी एंड फूड सिक्योरिटी के प्रमुख देवेन्द्र शर्मा ने कहा कि नया बीज कानून प्लांट वराइटी प्रोटेक्शन एंड फार्मर्स राइटस अथारिटी के प्रावधानों के तहत किसानों के पारंपरिक रूप से बीज पर दिये गये अधिकार को खत्म करेगा। इससे भारत के बीज बाजार पर बीज कंपनियों की दावेदारी मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के संदर्भ में संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों की आमतौर पर अनदेखी की गई है।

नेशनल कमीशन आन फार्मर्स के पूर्व सदस्य डा आरबी सिंह ने कहा कि अभी सार्वजनिक उपक्रम की कंपनियों द्वारा विकसित की गई संकर बीज की किस्मों को नया नाम देकर निजी कंपनियां बाजर में बेच देती हैं। नया बीज कानून ऐसी प्रवतियों पर प्रभावी अंकुश लगाने में सक्षम हो सकेगा। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों के सामने आने पर बीज का डीएनए परीक्षण कराना संभव हो सकेगा जिससे कि बीजों के ऊपर दावेदारी की शिनाख्त की जा सकेगी।

अंतरराष्ट्रीय संगठन ग्रीनपीस के भारत में कैम्पेन मैनेजर राजेश कृष्णा ने कहा कि जिस समय में देश में यह विधेयक लाने की तैयारी है उसे देखते हुए लगता है कि यह अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के बीज व्यवसाय को प्रोत्साहित और संवर्धित करने के लिए लाया जा रहा है।

कृष्णा ने कहा कि यह किसानों को गुणवत्तायुक्त बीज उपलब्ध कराने के मकसद से नहीं, बल्कि बीजों पर से उनके अधिकारों को छीनने के लक्ष्य से प्रेरित मालूम देता है। उन्होंने कहा कि नये बीज कानून से अंततः अदालती मामलों में वद्धि होगी क्योंकि कंपनियां किसानों पर उनके अपने ही बीज का उपयोग करने पर भी बीज की किस्म की चोरी का आरोप मढ़ सकती हैं।

बीकेएस अध्यक्ष चौधरी ने कहा कि अमेरिकन मेडिकल ऐकेडमी आफ इन्वार्यनमेन्टल साइंस ने भी अपने यहां के चिकित्सकों को आगाह किया है कि वे जीएम खाद्य पदार्थों पर तत्काल रोक लगाने की चेतावनी जारी करें। चौधरी ने कहा कि दुनिया में कहीं भी जीएम फसलों से उत्पादकता नहीं बढ़ी है बल्कि इसके उलट इससे निर्यात ही प्रभावित होता है क्योंकि कई देश क्रास पालिनेशन का सवाल उठाते हुए पारंपरिक फसलों के संक्रमित होने की आशंका जताकर निर्यात की खेप को बाधित कर देते हैं।

चौधरी ने कहा कि विश्व व्यापार संगठन की बाध्यता के तहत भारत ने तो पहले ही प्लांट वरायटी प्रोटेक्शन एंड फार्मर्स राइट एक्ट पारित कर रखा है, जिसमें ब्रीडर (नया बीज तैयार करने वाले) और किसान दोनों के हितों की रक्षा की बात कही गयी है, तो फिर नये कानून की आवश्यकता कहां से आ गयी। उन्होंने कहा कि अगर जरूरी हो भी तो पुराने कानून में कुछ संशोधन किया जा सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि नये बीज कानून का असली मकसद बीज के बाजर पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को काबिज कराना है, जो उन्हीं के दबाव में तैयार किया गया मालूम देता है।

चौधरी ने कहा कि भारत में बीटी जीन का प्रयोग संकर प्रजतियों पर किया जा रहा है जबकि चीन जसे देशों में इस तरह का प्रयोग केवल वहां की मूल प्रजतियों में करने की छूट दी गई है ताकि वहां किसानों को खेती के लिए हर बार नया बीज खरीदना न पड़े और वे उसे बचाकर बुवाई के लिए फिर से इस्तेमाल कर सकें। मगर हमारे यहां जीन प्रौद्योगिकी का प्रयोग संकर किस्मों के साथ किया जा रहा है। इस कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियां अंततः किसानों को रायल्टी के लिए बाध्य कर सकती हैं।

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