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राजनीति में बुलडोजर

मुलायम सिंह यादव की इच्छा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के बनवाए सारे स्मारकों पर बुलडोजर चलाने की है। इसमें कोई शक नहीं कि अगर उन्हें फिर सत्ता मिली तो वे ऐसा कर सकते हैं। इससे यही साबित होता...

राजनीति में बुलडोजर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 28 Jun 2009 08:27 PM
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मुलायम सिंह यादव की इच्छा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के बनवाए सारे स्मारकों पर बुलडोजर चलाने की है। इसमें कोई शक नहीं कि अगर उन्हें फिर सत्ता मिली तो वे ऐसा कर सकते हैं। इससे यही साबित होता है कि बुलडोजरों को किसी भी राज में काम मिलता रहेगा, मायावती ने जो स्मारक बनवाए हैं, उनके निर्माण में भी बुलडोजरों का इस्तेमाल तो हुआ ही होगा।

बुलडोजरों की जरूरत उत्तर प्रदेश को है, लेकिन वहा की जनता यह चाहती है कि वे दूसरे कामों में भी तो चले। अवध निर्माण गिराने में उनका इस्तेमाल हो, सड़कें बनवाने में हो, अस्पताल और दूसरी आम जनता के जरूरत के निर्माण कार्यो में हो। ताकि नए बिजलीघर बने, रोजगार के लिए नए नए उद्योग लगें और वे उद्योग उत्तर प्रदेश में ही ठहर जाएं जो बिजली ओर दूसरी जरूरत की चीजों की किल्लत की वजह से उत्तर प्रदेश छोड़कर जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से है और इसकी जनता भी विकास के रास्ते पर सफर करना चाहती है।

समस्या यह है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति जिन दो बड़ी ताकतों के बीच बंटी हुई है, उनके अजेंडा जमीनी संदर्भो में राज्य की व्यापक भलाई के नहीं दिखाई देते, बल्कि निहायत ही व्यक्तिगत मालूम पड़ते हैं। मुलायम सिंह यादव मायावती के बनाए स्मारकों के विरुद्ध हैं तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि खुद उनके राज में कितने जनकल्याणकारी निर्माण हुए। उनके राज के दौरान प्राय: ढेरों मॉल और दूसरे निजी निर्माण ही सामने आए हैं जिनके पीछे मुलायम सिंह के नजदीकी लोगों का पैसा बताया जाता है और जिनका समाज के लिए उतना ही मूल्य है, जितना मायावती के बनाए स्मारकों का।

अनेक ऐसे अपराधी तत्व तब भी सत्ताधारी पार्टी के साथ थे, जो अब सत्ताधारी पक्ष में बताए जाते हैं और अगर फिर मुलायम सिंह सत्ता में आए तो अचरज नहीं कि उनके साथ जा खड़े होंगे। मायावती का एकमात्र अजेंडा यदि सपा के अनुसार दलित की बेटी का राजनीति में आगे बढ़ते जाना है तो मुलायम सिंह की राजनीति में भी मेरा परिवार, मेरे मित्रों से आगे बात बढ़ी नहीं है। प्रदेश की जनता को इन व्यक्तिगत लड़ाइयों से कोई लेना-देना नहीं, वह ज्यादा व्यापक जनकल्याण की राजनीति चाहती है। अगर ये राजनेता वह राजनीति नहीं कर सकते तो जनता आज नहीं तो कल ऐसे नेता ढूंढ़ लेगी, जो सबके भले की सोचें।

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