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दयानतदारी की हद

इब्ने इंशा ने ‘उर्दू की आखिरी किताब’ में कुछ ऐसा लिखा है कि कहते हैं बहादुरशाह ‘जफर’ के लिए उस्ताद ‘जौक’ गजलें लिखते थे। अगर यह सच है तो उस्ताद ‘जौक’...

दयानतदारी की हद
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 24 Jun 2009 09:47 PM
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इब्ने इंशा ने ‘उर्दू की आखिरी किताब’ में कुछ ऐसा लिखा है कि कहते हैं बहादुरशाह ‘जफर’ के लिए उस्ताद ‘जौक’ गजलें लिखते थे। अगर यह सच है तो उस्ताद ‘जौक’ बड़े दयानतदार थे, अच्छे-अच्छे शेर बहादुरशाह ‘जफर’ को दे देते थे और बुरे-बुरे शेर अपने दीवान के लिए रख लेते थे। इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि बहादुरशाह ‘जफर’ के नाम से उस्ताद ‘जौक’ गजलें लिखते थे। ऐसी ही उदार हमारी वाम पार्टियां हैं।

जब से वाम पार्टियां लोकसभा चुनाव में ध्वस्त हुई हैं, तबसे उनके समर्थकों के लेखों का एक मुख्य मुद्दा यह होता है कि  कांग्रेस गरीबों के उत्थान के लिए जिन कार्यक्रमों, नरेगा वगैरह की वजह से चुनाव जीती ये सारे कार्यक्रम तो वाम पार्टियों ने लागू करवाए थे, जब वे संप्रग सरकार को समर्थन दे रही थीं। लेकिन जब उन्होंने सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो जनता को वे बता नहीं पाईं कि ये कार्यक्रम दरअसल हमारे हैं और कांग्रेस को इनका फायदा हो गया।

विनम्रता और संकोच के चलते वाम मोर्चे के लोग इन कार्यक्रमों का फायदा लेना ही नहीं चाहते थे, वे चाहते थे कि कांग्रेस ही इनका श्रेय ले जाए। वे यह भी जानते थे कि परमाणु समझोते के विरोध के आधार पर लोग उन्हें वोट नहीं देंगे फिर भी वे उसी मुद्दे पर वोट मांगने गए।

तब अखबारों में यह खबर भी छपी थी कि कैसे पश्चिम बंगाल में माकपा के लोग उस जनता को परमाणु समझौते के बारे में भाषण देने गए तो राशन की दुकानों पर भ्रष्टाचार और लापरवाही के खिलाफ जनता आंदोलन कर रही थी। जनता चिल्लाई कि परमाणु समझोता नहीं हमारी समस्या राशन है। इस पर भी जब पार्टी कॉमरेड नहीं माने तो जनता ने उनकी ‘दम दम दवाई’ कर दी।

‘दम दम दवाई’ वह है, जिसे कुछ दिनों पहले वृंदा करात ने अपने समर्थकों से कहा था कि वह अपने विरोधियों को दे। कुछ दिन पहले तक माकपा वाले ही अपने विरोधियों को ‘दम दम दवाई’ की खुराक देते थे, अब उनके विरोधी, खासकर माओवादी उन्हें ही उलटे दवाई पिलाने लगे हैं। फिलहाल मुद्दा गरीबों के लिए कार्यक्रमों के श्रेय का है।

वाम मोर्चे के घटक श्रेय न लेने पर इस कदर आमादा थे कि उन्होंने अपने राज वाले राज्यों में उनको ठीक से लागू तक नहीं किया। नरेगा सहित तमाम ऐसे कार्यक्रमों का रिकॉर्ड जिन राज्यों में बहुत खराब है, उनमें पश्चिम बंगाल है। सस्ते दामों पर अनाज की सरकारी योजना की वहां बुरी हालत है। ग्रामीण विद्युतीकरण, स्वास्थ्य, शिक्षा तमाम क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल सबसे पीछे वाले राज्यों में है। ऐसी विनम्रता, ऐसा संकोच और ऐसी दयानतदारी आजकल की दुनिया में कहां देखने को मिलती है।

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