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इस बाजार में कभी कोई मंदी नहीं

संगीत वर्तमान को जीने का सबसे बेहतरीन रास्ता है। सुरों की डाल पर चहचहाते पंछियों की बदौलत ही लोगों को जीवन की बगिया में जी बहलाने का बहाना मिला रहता है। यह संगीत ही है जिसके बारे में इतना तयशुदा ढंग...

इस बाजार में कभी कोई मंदी नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 21 Jun 2009 03:03 PM
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संगीत वर्तमान को जीने का सबसे बेहतरीन रास्ता है। सुरों की डाल पर चहचहाते पंछियों की बदौलत ही लोगों को जीवन की बगिया में जी बहलाने का बहाना मिला रहता है। यह संगीत ही है जिसके बारे में इतना तयशुदा ढंग से कहा जा सकता है कि इस बाजार में कभी कोई मंदी नहीं आने वाली। हर साल आने वाले म्यूजिक डे पर यही लगता है कि बीते साल में भी संगीत बाजार के भाव खूब बढ़े और उसने लोकप्रियता के कई नए आसमान भी गढ़े।

अपने आसपास नजर दौड़ाएं तो लोगों को यही कुछ कहते हुए देखेंगे कि मोबाइल फोन वही अच्छा, जो संगीत का भी मजा दे या एफएम चैनल वही अच्छा, जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय संगीत बजाए। इसी तरह हिट फिल्म में हिट संगीत होना तो पुरानी बात है, लेकिन किसी गाने का स्थानीय बाजार से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार तक में धूम मचाना इस दौर की अहम उपलब्धि है। यह संभव हो पाया है इंटरनेट पर अंगडमई लेती वैश्विक स्तर की सांगीतिक समझ के  विकसित होने से। भले ही यह तेवर शहरी हिस्सों में ज्यादा महसूस देते हों, लेकिन इसका असर तो चारों तरफ महसूस किया जा सकता है। फिलवक्त संगीत आकाश पर जो नए ट्रेंड नज़र आते हैं उनमें यह साफ दिखता है कि इंडियन आयडल से शुरू हुआ नए सुर पुराधाओं के आगमन का सिलसिला छोटे पर्दे पर अब भी जारी है। यह सिर्फ टीवी चैनलों पर ही नहीं हो रहा बल्कि देश के कोने-कोने से संगीत प्रतिभाएं अलग-अलग मंचों पर प्रतिस्पर्धा करती नजर आती हैं। सुरों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए संगीतकार भी विभिन्न चैनलों के अलावा देश-विदेश में शोज करके या रेडियो के एफएम चैनलों तक पर गायकी की उभरती प्रतिभाओं को खोज कर पेश करने में जुटे हैं।
 
संगीत के प्याले में इस दौर का सबसे बड़ा तूफान उठाया है मोबाइल फोन ने। ऐसी किसी मोबाइल कंपनी की आप कल्पना नहीं कर सकते, जो संगीत से अछूती रहकर अपने दूरभाष यंत्र या दूरसंदेश सेवा को चला सके। सोनी हो या नोकिया या इनसे होडम् लेते चाइनीज फोन, संगीत सुनने और सहेजने का ऑप्शन आपको अकसर मिल ही जाएगा क्योंकि यह डिमांड में है। अव्वल होने की होड़ में वही है जिसने बहुआयामी फॉरमेट में अपने ग्राहकों को संगीत सुनने की सुविधाएं दी हैं। एफएम, एमपी थ्री, एमपी फोर, विंडो मीडिया प्लेयर, रीअल प्लेयर, प्री-लोडेड लोकप्रिय संगीत, एफएम चैनल सुनने व रिकॉर्ड करने की सुविधा प्रदान करने वाले हैंडसेट ही सबसे ज्यादा मांग में हैं। और यही क्यों, तमाम कंपनियों पर यह दबाव भी रहा कि वे रिंग टोन, सिंग टोन और कॉलर टय़ून के रूप में सबसे बेहतर कंपोज की गई डिजिटल साउंड में नई व लोकप्रिय धुनें-गाने उपलब्ध कराएं।

कुल संगीत बाजार का 40 फीसदी कारोबार तो इस नए माध्यम ने ही सुरों की दुनिया के बूते संभाल लिया है। आंकडमें का खेल देखें तो इस साल संगीत की बिक्री ने ही करीब 4500 करोडम् रुपए की कमाई का कीर्तिमान गढम है तो इसमें बड़ी हिस्सेदारी मोबाइल संगीत सेवा की है।

कंप्यूटर और इंटरनेट पर संगीत की बात करें तो शायद ही कोई कंप्यूटर वाला ऐसा घर या दफ्तर होगा जहां म्यूजिक प्लेयर की व्यवस्था न हो। बोरियत दूर करने या अपने काम की गति और उसमें रुचि बढमने के लिए भी लोग संगीत का सहारा लेते हैं। इंटरनेट रेडियो और ब्लॉगर्स भी संगीत परोसने और बांटने में पीछे नहीं हैं। इसने जो सबसे बड़ा काम किया, वह यह कि स्थानीय संगीत को भी इसने ग्लोबल रंगत दी। पहले जहां पंजाबी संगीत और भांगडम ही अंतरराष्ट्रीय बाजारों में धूम मचाते थे वहां अब भारतीय भाषाओं की लोक संगीत की भी अंतरराष्ट्रीय संगीत बाजार में पूछ हो रही है। इसके संगीत से कमाई करने वाले टीवी चैनल और एफएम रेडियो भी हैं।

लेकिन इनसे संगीत बाजार को जितना फायदा होता है, अब उससे कहीं ज्यादा नुकसान भी झेलना पड़ रहा है। नए फिल्मी और गैर फिल्मी संगीत का परिचय जहां इन पर होता है वहीं इनकी वजह से संगीत कंपनियों की कमाई धुल जाती है। माना जा रहा है कि संगीत के कुल कारोबार में 1700 करोड़ की हिस्सेदारी पॉयरेटेड संगीत की है। हालांकि इंडियन म्यूजिक इंडस्ट्री इस पॉयरेसी खिलाफ अभियान चलाती है, लेकिन वह इस बाजार पर आंशिक असर ही डाल पाती है। एफएम चैनलों की वजह से गाडिम्यों में चलने वाले कैसेट और सीडी प्लेयर गायब हो रहे हैं। लेकिन अब तो संगीत कंपनियों का इनसे भी बड़ा नुकसान पेन ड्राइव, आइपोड, नकली एमपी थ्री और फोन से फोन पर हो रहे संगीत के डाउनलोड की सुविधा से हो रहा है। संगीत कंपनियों द्वारा पायरेसी की विस्तार लेती चुनौती से जूझने का जज़्बा भी परवान चढता नजर आया। इस गंभीर चुनौती के मद्देनजर ऑनलाइन अपना मौलिक संगीत बेचने की कवायद भी संगीत कंपनियों ने शुरू की है। लेकिन संगीत प्रेमियों की यह शिकायत भी वाजिब है कि ऑनलाइन संगीत भी काफी महंगा है। ऐसे में हैरत क्या, यदि ज्यादातर संगीतप्रेमी पॉयरेसी के रास्ते को ही  अपनाने को मजबूर होते रहें।

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