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लालकिला : बिना जफर, सूना है सफर

दिल्ली का लालकिला बेशक अपने बनाने वाले बादशाह की सदियों से याद तो दिलाता आ रहा है, किन्तु देश के अंतिम मुगल वंशज बादशाह बहादुर शाह जफर के सूनेपन का गंभीर अहसास भी करा रहा है। अपनों की ही गद्दारी के...

लालकिला : बिना जफर, सूना है सफर
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 15 Jun 2009 08:04 PM
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दिल्ली का लालकिला बेशक अपने बनाने वाले बादशाह की सदियों से याद तो दिलाता आ रहा है, किन्तु देश के अंतिम मुगल वंशज बादशाह बहादुर शाह जफर के सूनेपन का गंभीर अहसास भी करा रहा है। अपनों की ही गद्दारी के शिकार बने बहादुरशाह जफर को उसकी अंतिम इच्छानुसार दो गज जमीन भी इस लालकिले में देश की सरकार, स्वतंत्रता के बाद भी न दिला सकी। दिल्ली के एक झुग्गीवासी व्यक्ति को यह सरकार वर्षो से 25 वर्गगज भूमि उपलब्ध कराती आ रही है। देश के कई शीर्ष स्तर के नेताओं को इस सरकार ने उनकी ‘समाधि’ के नाम पर लालकिले के पीछे सैकड़ों एकड़ भूमि का आवंटन कर दिखाया। यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी व देश के प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह तथा उनके जम्बो मंत्रिमंडल से मेरा अनुरोध है कि देश की आजदी के बासठ वर्ष बाद तो कमसे कम रंगून स्थित जफर-दरगाह से इस बदनसीब बादशाह की कब्र वापिस लाकर लालकिले के सामने राष्ट्रीय सम्मान सहित स्थापित करवाई जए व नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के संकल्प को पूरा किया जए। दिल्ली का यह लालकिला बिना जफर के उदास लग रहा है।
किशन लाल कर्दम, नई दिल्ली

धरोहरों का भी रखो ख्याल
दिल्ली में दुनिया भर से लोग यहां के पर्यटक  स्थलों और ऐतिहासिक इमारतों को देखने आते हैं। आए दिन जंतर-मंतर पर प्रदर्शन और धरने होते रहते हैं  पिछले दिनों प्रदर्शनकारियों ने ऑस्ट्रलिया में छात्रों के साथ हो रहे नस्लीय भेदभाव पर प्रदर्शन किया। ठीक इसी तरह हाल में ही मेडिकल के छात्रों ने स्क्रीनिंग को लेकर काले मास्क पहनकर प्रदर्शन किया। मेरी तमाम लोगों से अपील है कि खास कर देश के ऐतिहासिक इमारतों को धरने प्रदर्शन का केन्द्र न बनाएं।
प्रिया सक्सेना, मालवीय नगर, नई दिल्ली

समाधान हो न कि विवाद
पृथ्वी के लगातार बढ़ रहे तापमान का कारण आज की ग्लोबल वार्मिग है। इसका प्रमुख कारण ग्रीन हाउस गैसों में हो रही बढ़ोतरी है। आखिर इसका जिम्मेवार कौन है यह विकसित और विकास शील देशों के बीच एक बहस का मुद्दा बन चुका है। इस खतरे से निबटने के लिए विवाद को और हवा न देकर सबको मिलकर समाधान ढूंढना चाहिए।
पूजा डबास, नई दिल्ली

नस्लवाद एक जिन्न
नस्लवाद नाम के जिन्न का भय हमेशा से ही पूरे विश्व में छाया रहा है। इतिहास गवाह है, चाहे यूरोप हो, दक्षिण अफ्रीका या आस्ट्रेलिया इन देशों में खास तौर पर नस्लवाद की भावना रही है। मुगलों ने भी अपनी नस्ल के विस्तार के लिए अन्य धर्मो के लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिये जुल्म किये तथा उन्हें इस्लाम कबूलने के लिये मजबूर किया।  आज इस आधुनिक दुनिया में भी नस्लवाद एक संक्रामक बीमारी की तरह फैलना शुरू हो गाया है। हमारी सरकार को एक तो विदेशों की सरकार को अपने यहां के लोगों के मन से नस्लवाद की भावना को खत्म करना होगा और दूसरा अपने देश के युवाओं का विदेशों की ओर पलायन रोकना होगा। अगर नस्लवाद से निपटना है तो इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।
संजय प्रधान, देहरादून

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