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लोकतंत्र अहंकार और अतिवाद का नाश करता है। उसे न अतिचारी दक्षिण पंथ रास आता है, न ही वाममंथ। वह राजनीति को उसी तरह मध्यम मार्ग पर ले जाने का इच्छुक रहता है जिस प्रकार बुद्ध धर्म को मध्यमार्ग पर ले...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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लोकतंत्र अहंकार और अतिवाद का नाश करता है। उसे न अतिचारी दक्षिण पंथ रास आता है, न ही वाममंथ। वह राजनीति को उसी तरह मध्यम मार्ग पर ले जाने का इच्छुक रहता है जिस प्रकार बुद्ध धर्म को मध्यमार्ग पर ले जाना चाहते थे। यह मान्यता इस चुनाव में दृढ़ हुई है। लोकतंत्र और राजसत्ता की असली मालकिन भारतीय जनता ने हिंदुत्ववाद के सहारे राजनीति करने वाली भाजपा और मृत स्तालिनवाद को सीने से वत्सला बंदरिया की तरह चिपकाए घूम रही माकपा को उनकी सीमाएं बता दी हैं। जनता ने बता दिया है कि राष्ट्र को चलाने का ख्वाब देखने वाली पार्टियों का यह पाखंड नहीं चलने वाला है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर किसी और मॉडल व नीति की बात करं और राज्य स्तर पर किसी और मॉडल को लागू करं। भारतीय जनता पार्टी भी राष्ट्रीय स्तर पर जिस उदार राजनीतिक गठाोड़ का दिखावा करती है, गुजरात में उसके ठीक विपरीत एक क्रूर और कठोर एकरसता भरा मॉडल तैयार करती है और उसी को पूर देश में प्रचारित करती है। इसी तरह वह राष्ट्रीय स्तर पर सद्भाव की बात करती है लेकिन उड़ीसा, कर्नाटक, गुजरात और जिस भी प्रदेश में मौका मिलता है वहां अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने से नहीं चूकती। और माकपा राष्ट्रीय स्तर पर उदारीकरण की नीतियों का विरोध करती है, लेकिन अपने शासन वाले बंगाल जसे राज्य में उन्हें इतनी कठोरता से लागू करती है कि होम करते उसके हाथ जल जाते हैं। उसके इसी पाखंड के चलते सिंगुर और नंदीग्राम जसे कांड हुए और बंगाल की ग्रामीण जनता ने उनका प्रतिकार किया। कॉफी हाउस और किताबों से रंगकर निकले माकपा के महासचिव प्रकाश करात शीतयुद्ध के बाद के दौर में न भारत की विदेश नीति की जरूरत समझ पाए, न ही ऊरा नीति की। वैचारिक हठवादिता के चलते वे न सिर्फ यूपीए सरकार के संचालन में अपनी अहम भूमिका गंवा बैठे, बल्कि केरल और बंगाल दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से भी दूरी बना बैठे और फिर जनता ने उनकी पार्टी से ही दूरी बना ली। बंगाल में अल्पसंख्यकों के विकास के आंकड़ों ने भी साबित कर दिया कि उनकी धर्मनिरपेक्षता का मॉडल दिल्ली में तो लंबे-चौड़े दावे करता है, लेकिन राज्य के मुस्लिमों के पास विकास का लाभ पहुंचता ही नहीं। इसीलिए जनता ने अगर पश्चिम बंगाल और केरल के आर्थिक-राजनीतिक मॉडल को झकझोर दिया है, तो गुजरात के मॉडल को भी देश में कहीं न लागू करने की हिदायत दी है। दक्षिणपंथी और वामपंथी ताकतों को जनता का यह संदेश समझना चाहिए।

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