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गिरफ्तारी के बाद?

डॉ. अमित कुमार की नेपाल में गिरफ्तारी के बाद पुलिस, सीबीआई और सरकार राहत महसूस कर रहे होंगे, पर कई सवालों के जवाब अभी ढूंढ़े जाने बाकी हैं। अमित ने अपने अवैध कारोबार का व्यापक जाल बिछा रखा था। वह 500...

 गिरफ्तारी के बाद?
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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डॉ. अमित कुमार की नेपाल में गिरफ्तारी के बाद पुलिस, सीबीआई और सरकार राहत महसूस कर रहे होंगे, पर कई सवालों के जवाब अभी ढूंढ़े जाने बाकी हैं। अमित ने अपने अवैध कारोबार का व्यापक जाल बिछा रखा था। वह 500 किडनियों का प्रत्यारोपण कर चुका है। उसके कुछ साथी पहले ही पकड़े गए, पर उसके नेटवर्क में शामिल कई दलाल व सहयोगी डॉक्टर अभी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। मुमकिन है कि मुस्तैदी से जांच करने पर कुछ और धूर्त-मक्कार लोगों की निशानदेही हो। यहां सवाल उठता है कि क्या इस पूरे मामले को उसकी ता*++++++++++++++++++++++++++++र्*क परिणति तक ले जाकर अपराधियों को उचित सजा दिलाई जाएगी? अनुभव बताता है कि शुरूआती जांच का उत्साह कुछ समय बाद ढीला पड़ जाता है। इस दौरान अपराधी जेलों के अंदर या जमानत पर छूटकर मौज की जिन्दगी जीते हैं। कुछ मामलों में ऐसे लोग किसी अन्य से जुड़कर फिर उसी काले कारोबार में सक्रिय होकर करोड़ों के वारे-न्यारे करते हैं। रक्त व शारीरिक अंगों के अवैध कारोबार में सिर्फ अमित नहीं, अन्य धंधेबाज भी सक्रिय रहे हैं, और उनकी कारगुजारियां समय-समय पर सुर्खियां भी बनीं। विडम्बना यह है कि इन अवैध धंधों-धंधेबाजों के खिलाफ अब तक कोई ठोस मुहिम सामने नहीं आई, जिससे अपराधियों का हौसला बढ़ा है। नेपाल में अमित की गिरफ्तारी के बाद उसे भारत लाना होगा, जिसके लिए सीबीआई प्रयासरत है। नेपाल के साथ 1में म्युचुअल लीग असिस्टेंस ट्रीटी होने के कारण उसे भारत लाना आसान होगा, पर ऐसा क्यों होता है कि प्रत्यावर्तन की सफलता के बावजूद हम अपराधियों को सजा नहीं दिला पाते? आफताब अंसारी, अबू सलेम, मोनिका बेदी जैसे कई कुख्यात नाम हैं, जिनका प्रत्यावर्तन बमुश्किल हुआ था। आज तक उन पर लगे आरोपों का कोई अंतिम न्यायिक फैसला नहीं हुआ। क्या इसके लिए हमारी पुलिस जांच में लापरवाही, कानूनों या न्याय प्रक्रिया की खामियां जिम्मेदार है? सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि मौजूदा अंग प्रत्यारोपण कानून में संशोधन-परिवर्तन कर अपराधियों के नेटवर्क को कैसे ध्वस्त किया जाए, और इसके साथ मरीजों की अंग-प्रत्यारोपण की मांग की पूर्ति व्यावहारिक बन जाए। मिसाल के तौर पर भारत में प्रतिवर्ष लाखों लोगों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है, पर वर्तमान कानूनी आधार पर सप्लाई मात्र कुछ हजार संभव होती है। कानूनी संशोधन में यह सावधानी बरतना जरूरी है कि अंग के दानदाताओं का शोषण, उसे डराने-धमकाने या धोखे से अंग निकालने की घटनाएं न हों। दुनिया में स्टेम सेल पर अनुसंधान के उत्साहवर्धक नतीजे प्राप्त हो रहे हैं और संभव है कि कई रोगों के इलाज का कोई रास्ता निकल आए, पर फिलवक्त यह दूर की कौड़ी है।

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