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अपसढ़ गढ़ के मलबे में दबे हैं विश्वविद्यालय के अवशेष

बिहार के नवादा जिले के अपसढ़ गांव का धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व है,परन्तु गोलियांे की गूंज और महिलाआें की चीख में यह पहलु गुम होकर रह गयी है। गांव में मौजूद अवशेषों और प्राप्त पुरातात्विक...

 अपसढ़ गढ़ के मलबे में दबे हैं विश्वविद्यालय के अवशेष
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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बिहार के नवादा जिले के अपसढ़ गांव का धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व है,परन्तु गोलियांे की गूंज और महिलाआें की चीख में यह पहलु गुम होकर रह गयी है। गांव में मौजूद अवशेषों और प्राप्त पुरातात्विक महत्व की मूर्तियों से यहां एक विशाल सांस्कृ तिक और धार्मिक विश्वविधालय होने का पर्याप्त साक्ष्य होने की बात कही गई है। अपसढ़ को नालंदा से भी प्राचीन शेैक्षणिक केन्द्र माना जा रहा है। बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग के पूर्व निदेशक डा. प्रकाश चरण प्रसाद ने नवादा के स्थापना दिवस के मौके पर प्रकाशित नव उन्मेष नामक पुस्तक में इस बात का जिक्र किया है।ड्ढr ड्ढr उल्लेखनीय है कि अपसढ़ विश्वविधालय का विस्तार वर्तमान के शाहपुर से मानन गांव तक था । समीप के शाहपुर से मिली प्रतिमा पर अंकित अग्रहार शब्द से प्रतीत होता है कि यह स्थान तक्षशिला के समकालीन था। चूंकि तक्षशिला का जिक्र भी अग्रहार के रूप में ही मिलता है ।ड्ढr ड्ढr डा. प्रकाश ने जिक्र किया है कि इस विशिष्ट अघ्ययन केन्द्र में स्वयं भगवान बु अपने शिष्यों के साथ अपसढ़ आए थे और पार्वती पहाड़ी की गुफा में रुके थे । अपसढ़ के समीप मौजूद पार्वती गुफा के बारे में कहा गया है कि इन्द्र एवं ब्रहमलोक विषय पर महाशालों व भगवान बु के बीच शास्त्रार्थ हुआ था। जबकि नालंदा में विश्वविधालय की स्थापना गौतम बु के बाद हुई थी। कालान्तर में, उत्तरगुप्तकालीन राजा आदित्यसेन की पत्नी कोणदेवी ने एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था,जिसमें विष्णु के वराहवतार की प्रतिमा स्थापित की गई थी। विधार्थी और शिक्षकों के लिए विशाल तालाब का निर्माण करवाया था। 360 बीघे में मौजूद तालाब इसका साक्ष्य है। मंदिर से तालाब तक के रास्ते का जिक्र अपसढ़ अभिलेख में भी मिलता है। नारद: संग्रहालय के अघ्यक्ष रहे ने भी नवादा के पुरावशेष नामक पुस्तक में अपसढ़ के सांस्कृतिक और शैक्षणिक महत्व का जिक्र किया है। यहां के गौरवशाली अतीत का उल्लेख पुरातत्वविद डी आर पाटिल की पुस्तक ‘एंटीक्यूरियन रीमेन इन बिहार’, जॉन फेथफुल फ्लीट की सी आई आई और भारतीय अभिलेख संग्रह के खंड तीन में भी मिलता है। उल्लेखनीय है कि अपसढ़ गढ़ की खोज सबसे पहले मेजर कीटो ने 1847 में की थी। 1872 में बेगलर ने अपसढ़ के अवशेषों को देखा जिसका वह अपने प्रतिवेदन मे जिक्र किया था। बिहार सरकार ने 1से 81 तक अपसढ़ गढ़ की खुदाई कराई, जिसमें भगवान विष्णु के अवतार वाराह की विशाल प्रतिमा मिली थी, प्रतिमा के हर भाग पर लघु मुíतयां उत्कीर्ण हैं, जो संपूर्ण ब्रह्मांड के साथ ही पृथ्वी की सृष्टि को दर्शाती है।

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