10वीं अनुसूची के मामलों के निपटारे में स्पीकर लाचार
झारखंड विधानसभा के तकरीबन एक दर्जन विधायकों पर दसवीं अनुसूची (दल-बदल कानून का उल्लंघन) से जुड़े मामलों का निपटारा अब तक नहीं हो पाया है। इनका निपटारा कब होगा, स्पीकर आलमगीर आलम भी कुछ स्पष्ट नहीं कह...
झारखंड विधानसभा के तकरीबन एक दर्जन विधायकों पर दसवीं अनुसूची (दल-बदल कानून का उल्लंघन) से जुड़े मामलों का निपटारा अब तक नहीं हो पाया है। इनका निपटारा कब होगा, स्पीकर आलमगीर आलम भी कुछ स्पष्ट नहीं कह पा रहे हैं। पूछने पर वह सिर्फ इतना ही कहते हैं- जल्द निपटारा होगा। ये बातें वे पिछले एक साल से लगातार कह रहे हैं। जिनके खिलाफ मामला चल रहा है, उन्हें कई बार नोटिस दिया जा चुका है। उनके जवाब भी मिल चुके हैं। कई सदस्य आखिरी मौका देने के बहाने समय लेते जा रहे हैं और स्पीकर भी उन्हें पूरा समय दे रहे हैं। लेकिन अभी तक अंतिम सुनवाई शुरू नहीं हुई है। स्पीकर ने 25 फरवरी को फिर कहा है कि बजट सत्र के बाद वह इस मामले का निपटारा कर देंगे। वैसे मीडिया के साथ बातचीत में उनकी लाचारी साफ झलक रही थी।ड्ढr दसवीं अनुसूची से जुड़े मामले का निपटारा सिर्फ और सिर्फ स्पीकर को ही करना है। संविधान ने उन्हें यह अधिकार दिया है। लेकिन संविधान प्रदत्त इस अधिकार का झारखंड के स्पीकर इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा के स्पीकर हासिम अब्दुल हलीम ने दसवीं अनुसूची के मामले में जो मत व्यक्त किया है, आलमगीर आलम भी उससे सहमत दिखायी देते हैं। हलीम का कहना है कि दसवीं अनुसूची के निपटारे का अधिकार स्पीकर को नहीं देना चाहिए। स्पीकर किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़ा होता है। स्पीकर पद से हटने के बाद वह फिर अपनी पार्टी के पास चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगने के लिए जाता है। उसके समक्ष कई राजनैतिक मजबूरियां होती हैं।ड्ढr आलमगीर कहते हैं कि चुनावी प्रक्रिया और उम्मीदवारों के चयन में जब तक राजनैतिक दल सावधानी नहीं बरतेंगे, तब तक ऐसी समस्याएं उत्पन्न होती रहेंगी। उनके तर्क से असहमत पत्रकारों ने उनके समक्ष लोकसभा का उदाहरण भी रखा कि कैसे सोमनाथ चटर्जी ने पैसे लेकर सवाल पूछनेवाले सांसदों को बर्खास्त किया।