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मजदूरी कर बेटी को पढ़ा रहे डॉक्टरी

तुपुदाना के बेरमादवासी डेविड कच्छप और उनकी पत्नी निभा पड़ोसियों के लिए आदर्श बन गये हैं। अपनी बेटी डी मारिया को डॉक्टर बनाने के लिए दोनों दिन-रात काम करते हैं। बेटी की पढ़ाई के बीच दोनों ने कभी गरीबी...

 मजदूरी कर बेटी को पढ़ा रहे डॉक्टरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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तुपुदाना के बेरमादवासी डेविड कच्छप और उनकी पत्नी निभा पड़ोसियों के लिए आदर्श बन गये हैं। अपनी बेटी डी मारिया को डॉक्टर बनाने के लिए दोनों दिन-रात काम करते हैं। बेटी की पढ़ाई के बीच दोनों ने कभी गरीबी को आड़े नहीं आने दिया। डेविड पूर्व सैनिक हैं।ड्ढr वह 2001 में सेना से से रिटायर हुए। उस समय जो पैसे मिले, उससे घर बनाया। जब बेटी का एडमिशन मेडिकल में हुआ, तो उन्हें समझ में आया कि सिर्फ पेंशन से बेटी की पढ़ाई पूरी नहीं होगी। फिर उन्होंने ठाना कि जैसे भी हो, बेटी को डॉक्टर बनाना है। भले ही दिन-रात एक करना पड़े। 18 से 20 घंटे कार्य करते हैं डेविड-दिन में निजी सुरक्षा गार्ड की और रात में एक ग्लास फैक्टरी में मजदूरी करते हैं। पत्नी निभा भी उनके साथ काम करती हैं। डेविड की 18 वर्षीया बेटी मारिया चेन्नई की संत मेरी आर्मी मेडिकल कॉलेज में प्रथम वर्ष की छात्रा है। 2007 की आर्म्ड मेडिकल प्रवेश परीक्षा में वह सेकेंड टॉपर रही है। मां-बाप के सपने को पूरा करने के लिए वह पूरी लगन के साथ पढ़ाई में जुटी है। मारिया इन दिनों रांची में है। पूछने पर बताती है, उसने कभी घरेलू कार्य में मां-बाप का हाथ नहीं बंटाया, फिर भी दोनों उसे बहुत प्यार करते हैं। वह उसके लिए भगवान हैं। मारिया सर्जन बनना चाहती है। उसकी इच्छा गांव में अस्पताल खोल निर्धन-असहाय रोगियों की सेवा करने की है। मारिया को अमेरिकन एसो. ऑफ मेडिकल की आेर से ऑफर भी मिला, जिसे ठुकरा दिया। वह बताती है, कॉलेज में पढ़ाई का माहौल अच्छा है। प्रो वेंकटेश्वरन उसे पूरा सहयोग करते हैं। उसे अपने मम्मी-पापा पर नाज है। मारिया के डॉक्टरी में नामांकन होने से उसके रिश्तेदार भी खुश हैं। तीन साल बाद वह रांची आयी है। उसका ज्यादा समय रिश्तेदारों के यहां ही बीत रहा है। 2रवरी को वह चेन्नई लौट जायेगी। बेटी की लगन को टूटने नहीं दूंगा : डेविडरांची। बुलंद हौसले के धनी डेविड कच्छप का बेटा दीपक 11वीं की पढ़ाई कर रहा है, वह इंजीनियर बनना चाहता है। डेविड कहते हैं, बेटी की पढ़ाई में मैंने जिस तरह तंगहाली को बाधक नहीं बनने दिया है, बेटे की पढ़ाई भी बाधित नहीं होने दूंगा। जैसे भी होगा, दिन-रात परिश्रम करके बेटे को भी इंजीनियर बनाऊंगा। निभा भी कहती हैं, हम बेटे-बेटी की पढ़ाई पूरी करायेंगे।

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