फोटो गैलरी

Hindi News बिंदी बनाकर जिंदगी संवार रहे हरिहांस के लोग

बिंदी बनाकर जिंदगी संवार रहे हरिहांस के लोग

सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के हरिहांस गांव के पांच दर्जन घरों के लोग रोजगार की तलाश में गांव से बाहर नहीं जाते। यहां के लोग घर में ही कुटीर उद्योग लगाकर बिंदी निर्माण करते हैं। बिंदी के निर्माण से...

 बिंदी बनाकर जिंदगी संवार रहे हरिहांस के लोग
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
ऐप पर पढ़ें

सीवान जिले के हुसैनगंज प्रखंड के हरिहांस गांव के पांच दर्जन घरों के लोग रोजगार की तलाश में गांव से बाहर नहीं जाते। यहां के लोग घर में ही कुटीर उद्योग लगाकर बिंदी निर्माण करते हैं। बिंदी के निर्माण से होने वाली आमदनी से अपनी तकदीर बदल रहे हैं। इसी आमदनी से अपनी जीविका चलाने के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर सभी खर्च का बोझ उठाते हैं । इसके बावजूद बचे रुपए भविष्य के लिए रखते हैं। इस धंधे में लगे लोगों ने सचमुच सफलता की एक नई कहानी गढ़ रहे हैं। यही नहीं इस कारोबार में लगे लोग अपने जीविकोपार्जन के साथ-साथ आसपास के लगभग एक हजार लोगों को भी रोजगार दिए हैं।ड्ढr ड्ढr इस कारोबार में पुरुष ही नहीं बल्कि घर की महिलाएं भी बढ़-चढ़ कर हाथ बंटाती हैं । यहां की बनी बिंदी पटना, मोतिहारी, बेतिया, रक्सौल के अलावा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बिकती हैं। यह गांव सीवान-हसनपुरा पथ पर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दक्षिण में है। वैसे तो यह गांव बहुत बड़ा है और गांव के प्राय: सभी घरों में यह कारोबार होता है। परन्तु बिसाती टोले में घर-घर बिंदी बनाई जाती है। घर के पुरुष सुबह से ही और महिलाएं खाना बनाने के बाद खा-पीकर इस कार्य में लग जाती हैं। बिंदी व्यवसाय में लगे अति उल्लाह बाबू भाई, मासूम, आफताब, सलाउद्दीन, हबू हसन, रोस्तम, माशूक अली, मैना, इम्तेयाज आदि ने बताया कि बिंदी के कार्ड, रिलिज पेपर, वेलवेट पेपर, फेबिकॉल दिल्ली से मंगाए जाते हैं। इस निर्माण में किसी तरह की मशीन का प्रयोग नहीं किया जाता। कारीगर हाथ से बड़ी बारीकी से एक से बढ़कर एक बिंदी का निर्माण करते हैं।ड्ढr ड्ढr प्लेन बिंदी के अलावा कढ़ाईदार बिंदी भी बनाई जाती है। केवल कार्ड पर बिंदी को फेबिकॉल से चिपकाने के लिए आसपास के गांवों की महिलाआें को दिया जाता है। इस तरह कारोबार से लगभग एक हजार परिवारों की जीविका चलती है। बिंदी निर्माण कर विकास की कहानी रच रहे लोग सरकारी उदासीनता के शिकार हैं। यहां के लोगों को इस रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिलती। सबसे आवश्यक सुविधा बिजली व पानी भी सरकार इस गांव को नसीब नहीं करा सकी। बिजली के अभाव में कारीगर मशीन नहीं लगा पाते और हाथ डाई से ही बिंदी बनाते हैं। अब विसाती टोलै के लोग नौकरी की तलाश में कहीं नहीं जाते और इसी धंधे से अपनी जिंदगी को संवारते हैं।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें