सेतु और सरकार
राजनीति में गलती करना जितनी बड़ी खबर होती है, दुबारा गलती न करना उतनी बड़ी खबर नहीं होती। शायद सरकार यही चाहती भी है कि रामसेतु मसले पर वह सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दाखिल करने जा रही है उस पर...
राजनीति में गलती करना जितनी बड़ी खबर होती है, दुबारा गलती न करना उतनी बड़ी खबर नहीं होती। शायद सरकार यही चाहती भी है कि रामसेतु मसले पर वह सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दाखिल करने जा रही है उस पर ज्यादा चर्चा न हो। शायद यही वजह है यह खबर देने के लिए उसने वह मौका चुना है, जब उसने लोकलुभावन बजट से चुनाव के पासे फेंक दिए हैं।वोट हासिल करने के लिए विरोधी दल भारतीय जनता पार्टी के पास अगर रामसेतु है, तो कांग्रेस के पास बजट है। पिछली बार वह रामसेतु के दूध से जली थी, इसलिए इस बार इस मसले को तब छुआ है जब वह ठंडा पड़ चुका है। यह बात अलग है कि वह इसे भी फूंक-फूंक कर ही पी रही है। इसलिए इस बार कहा गया है कि भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में खड़ी दीवार जैसी संरचना मानव निर्मित है इस बारे में सरकार के पास कोई प्रमाण नहीं है। अगर इसे भगवान श्रीराम द्वारा बनाया गया पुल माना जाता है, तो यह आस्था का मामला है और सरकार आस्था के मसले पर कुछ नहीं कह सकती। पिछली बार सरकार की तरफ से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने न्यायालय में जो हलफनामा दाखिल किया था, उसमें कहा गया था कि यह पुल भगवान राम ने बनवाया था ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं और राम एक इतिहास पुरुष न होकर एक मिथकीय चरित्र हैं। अब सरकार चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट सेतु समुद्रम परियोजना से अपना स्थगन आदेश हटा ले ताकि परियोजना को फिर से शुरू किया जा सके। परियोजना शुरू हो इसमें कांग्रेस से ज्यादा दिलचस्पी द्रमुक की है। इस परियोजना का सीधा लाभ तमिलनाडु को ही मिलेगा और द्रमुक इसे अपनी उपलब्धि के रूप में पेश करेगी। हालांकि आर्थिक तौर पर यह परियोजना देश के लिए कितनी फायदेमंद है या नहीं यह तय होना अभी बाकी है। इसके बारे में विशेषज्ञों ने दोनों तरह की राय दी है। पर अब यह मसला आर्थिक से कहीं ज्यादा बड़ा हो गया है। भाजपा और संघ परिवार ने इसे यह कहकर राजनैतिक रंग दे दिया है कि इस परियोजना से भारत और श्रीलंका के बीच उस पुल के अवशेष समाप्त हो जाएंगे जिसे भगवान राम ने बनाया था। भाजपा ने एक से अधिक मौकों पर साफतौर पर कहा है कि अगले आम चुनाव में वह रामसेतु को चुनावी मुद्दा बनाएगी। अब जब संप्रग सरकार के बजट ने समय से पहले चुनाव के संकेत दिए हैं तो रामसेतु को भी गरमाना ही है। सरकार अगर इस मसले पर कदम खींच लेती तो उसे भाजपा अपनी नैतिक जीत की तरह पेश करती। इसी से बचने के लिए उसने सावधानी भरा हलफनामा पेश किया है। हालांकि बेहतर यही होता कि यह परियोजना राजनैतिक मुद्दा न बनती और गुण-दोष के आधार पर ही बात तय होती।