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नया ट्रेंड, पहले रिहर्सल फिर डकैती

पहले ट्रेन से जुड़ी तमाम गतिविधियों की पड़ताल। मसलन सामान्य व आरक्षित बोगी कहां लगती हैं। किस डिब्बे में एस्कॉर्ट रहता है व किस ट्रेन में सुरक्षाकर्मी नहीं होते। ट्रेन के आने-जाने का अमूमन समय क्या...

 नया ट्रेंड, पहले रिहर्सल फिर डकैती
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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पहले ट्रेन से जुड़ी तमाम गतिविधियों की पड़ताल। मसलन सामान्य व आरक्षित बोगी कहां लगती हैं। किस डिब्बे में एस्कॉर्ट रहता है व किस ट्रेन में सुरक्षाकर्मी नहीं होते। ट्रेन के आने-जाने का अमूमन समय क्या होता है। इन बातों की पड़ताल के बाद डकैती की साजिश रची जाती है। तब शुरू होता है रिहर्सल और फिर लूटपाट। डकैतों का गिरोह सवार तो किसी भी स्टेशन पर हो सकता है लेकिन लूटपाट करने के बाद अपने ही इलाके में उतरता है। इससे छिपने या पुलिस से बचने में अपराधियों को सुविधा होती है। बहरहाल डकैतों के इस नए ट्रेंड से रेल पुलिस सकते में है। होली के पूर्व ट्रेनों में डकैतों का तांडव शुरू हो गया है। इसकी बानगी बीते मंगलवार की देर रात उस समय दिखी जब डकैतों ने गोरखपुर से हटिया जाने वाली मौर्य एक्सप्रेस में यात्रियों से लूटपाट की।ड्ढr ड्ढr अतीत पर नजर डालें तो सूबे में अमूमन हर वर्ष होली के महीने में ट्रेन डकैतों के ‘सॉफ्ट टारगेट’ पर रही है। इसका अहम कारण यह है कि होली के समय राज्य के बाहर रहने वाले लोग विभिन्न ट्रेनों पर सवार होकर यहां आते हैं। उनके पास महीनों या वर्षो की कमाई नकद व संपत्ति होती है। नतीजतन डकैतों-लुटेरों का गिरोह ज्यादा सक्रिय रहता है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक अपराधियों द्वारा पहले ट्रेन का ‘वर्क आउट’ किया जाता है। फिर स्थितियों को देखते हुए साजिश रची जाती है। इंदौर-पटना एक्सप्रेस, श्रमजीवी एक्सप्रेस समेत कई अन्य मामलों में पकड़े गए डकैतों के बयान से इस सच्चाई पर मुहर लगा दी है।ड्ढr ड्ढr पिछले कुछ समय से ट्रेनों में हुई लूट और डकैती की घटनाओं के तरीके से स्पष्ट है कि अपराधी ट्रेन में वेश बदल कर सवार होते हैं। कभी यात्रियों के रूप में टिकट लेकर तो कभी वेंडर की शक्ल में। कभी लुंगी-गंजी तो कभी फूलपैंट व टीशर्ट में लुटेरे होते हैं। ताकि यात्रियों के साथ ही पुलिसकर्मी भी आसानी से उन्हें नहीं पहचान सके। सूत्रों के मुताबिक रेल पुलिस समय-समय पर डकैतों के खिलाफ अभियान भी छेड़ती है। हालांकि एक गिरोह का पूरी तरह सफाया भी नहीं हो पाता है तब तक कई और उत्पात मचाने लगते हैं। नतीजतन पुलिस को भी अपराधियों तक पहुंचने में पसीने छूट जाते हैं।ं

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