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सफलता का पर्याय बनी इंटर पास मंजू

‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, जरा तबियत से एक पत्थर तो उछालो यारो।’ इन पंक्ितयों के रचयिता तो हैं दुष्यंत कुमार लेकिन इसे चरितार्थ कर रही है मुंगेर की मंजू कुमारी। शिक्षा के नाम पर इन्टर...

 सफलता का पर्याय बनी इंटर पास मंजू
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, जरा तबियत से एक पत्थर तो उछालो यारो।’ इन पंक्ितयों के रचयिता तो हैं दुष्यंत कुमार लेकिन इसे चरितार्थ कर रही है मुंगेर की मंजू कुमारी। शिक्षा के नाम पर इन्टर पास उस महिला ने अपने काम के बदौलत ऐसा जलवा बिखेरा कि योजना आयोग की एक कमेटी का वह एकमात्र बिहारी सदस्य बन गई।ड्ढr ड्ढr कल तक ‘आत्मा’ को एक साधु संतों से जुड़ी संस्था के रूप में जानने वाली मंजू आज मुंगेर जिले की ‘आत्मा’ के लिए सफलता की कहानी बनी हुई है। स्वयं सहायता समूहों के गठन की कला में वह दक्ष है और अबतक लगभग एक सौ समूहों का गठन कर चुकी है, जिसका फेडरेशन वह चलाती है। उन समूहों से जुड़ी महिलाएं बर्मी कंपोस्ट, बायो पेस्टीसाइड, बांस की टोकरी, मशरूम और शहद आदि का उत्पादन करती हैं। उनके उत्पाद हाथों - हाथ बिक जाते हैं। लेकिन मंजू का सपना है कि उसके उत्पादों का मार्केट लिंक दक्षिण कोरिया से हो। यह सपना भी वह हवा में नहीं देख रही है। फेडरेशन के बिक्री केन्द्र के उद्घाटन के समय उपस्थित कोरिया विश्वविद्यालय के डा. यंग गिल ली ने उसे यह आश्वासन भी दिया था।ड्ढr ड्ढr बमेती के निदेशक डा. आरके सोहाने बताते हैं कि बिक्री केन्द्र के लिए स्थान जिला प्रशासन ने उपलब्ध कराया है और मुंगेर की ‘आत्मा’ उसे पूरा सहयोग देती है। कुछ महिलाएं घर- घर घूमकर भी अपना उत्पाद बेचतीं हैं। उत्पादों की बिक्री से हुई आमदनी का दस प्रतिशत फेडरेशन की संचालिका मंजू को मिलता है। मंजू बताती हैं कि शुरू में वह ‘आत्मा’ को साधु- संतों की संस्था जानती थी। लेकिन जब उसने काम शुरू किया तो वह जान सकी कि यह सरकारी संस्था है जो किसानों के हित के लिए काम करती है। वह कहती है कि योजना आयोग की जेन्डर कमेटी के सदस्य के रूप में उसका चयन हुआ तो उसे लगा कि सरकार की नजर हर उस व्यक्ित पर होती है जो अपनी धुन में काम करता है। लेकिन उसके लिए इससे ज्यादा सुकू नदायक है कि वह गरीब महिलाआें को स्वावलंबी बनने का रास्ता दिखाती रहे।

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