बजट में वित्तीय चुनौती से निपटने के प्रयास नहीं
अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की नजर में भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि दर , बढती घरेलू बचत दर और विदेशी कर्ज के मोर्चे पर मजबूत स्थिति के बावजूद शून्य राजस्व घाटा और वित्तीय दबाव को झेलने के लिए ठोस उपाय...
अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की नजर में भारत की मजबूत आर्थिक वृद्धि दर , बढती घरेलू बचत दर और विदेशी कर्ज के मोर्चे पर मजबूत स्थिति के बावजूद शून्य राजस्व घाटा और वित्तीय दबाव को झेलने के लिए ठोस उपाय नहीं करने से बजट उनके लिए कुछ निराशाजनक रहा है। जानी मानी अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार एजेंसी फित्ज ने वर्ष 2008-0े बजट को वित्तीय मोर्चे पर ठोस उपाय के अभाव में कुछ निराशाजनक बताया है। उसने कहा है कि छठे वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने के प्रभाव से निपटने के लिए कर ढांचे को व्यापक बनाने की दिशा में कोई उपाय नहीं किया गया। वर्ष 2008-0में राजस्व घाटा पूरी तरह समाप्त किया जाना था लेकिन इस लक्ष्य को छोड़ दिया गया बजाय इसके बजट में अनेक लोक लुभावन घोषणाएं की गई। इससे खड़ी होने वाली वित्तीय चुनौती से निपटने के लिए कोई ठोस उपाय भी नहीं किए गए। एजेंसी कहती है कि भारत की आज जो मजबूत साख बरकरार है वह उसकी उच्च आर्थिक वृद्धि दर, ऊंची घरेलू बचत दर और विदेशी कर्ज के मोर्चे पर मजबूत स्थिति की वजह से है। दूसरी तरफ घरेलू मोर्चे पर उसका सामान्य लेनदेन, घरेलू कर्ज पर ब्याज की अदायगी और सरकार का सामान्य राजस्व की स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। एजेंसी मानती है कि वित्तीय सुधार के रास्ते पर आगे बढते हुए कई मुकाम हासिल किए हैं लेकिन लक्ष्य हासिल करने के लिए अभी भी ठोस उपायों की जरुरत उसने बताई है। फित्ज के मुताबिक सरकार की दूसरी देनदारियां भी हैं जिनका बजट में कोई जिक्र नहीं है। इसमें खाद्यान्न और तेल सब्सिडी तथा उर्वरक सब्सिडी बांड प्रमुख हैं। बजट में इनके बारे में कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया है। इस प्रकार के बांड पर ब्याज की अदायगी और उनकी परिपक्वता पर राशि के प्रावधान के बारे में कोई सुधारात्मक कदम की कोई पहल नहीं की गई है। सलाहकार एजेंसी के मुताबिक बजट कहता है कि वित्तीय सुधार का कार्य जारी रहेगा। उसका राजस्व घाटा कम होकर एक प्रतिशत रह जाएगा और राजकोषीय घाटा घटकर 2.5 प्रतिशत रह जाएगा। इसके बावजूद सरकार वित्तीय जबावदेही और बजट प्रबंधन कानून (एफआरबीएम) के तहत 2008-0में राजस्व घाटा समाप्त करने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई। अब सरकार इसके लिए एक और साल मांगने की तैयारी में है।फित्ज कहती है कि शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक खर्च की मद में आवंटन बढाने की वजह से ही राजस्व घाटे के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका है। उदाहरण के तौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य की मद में खर्च 10 से 15 प्रतिशत तक बढाया गया है। इसके अलावा किसानों को 60 हजार करोड़ रुपए का ऋण माफी पैकेज, व्यक्ितगत आयकर की छूट सीमा बढ़ाकर डेढ लाख रुपए कर दिए जाने का भी राजस्व पर असर पडेगा। ये सभी वर्ष 200में होने वाले आम चुनाव से पहले के उपाय के तौर पर देखे जा रहे हैं।ड्ढr