मंत्रियों का ‘इंप्रेशन’ बनाने में बाबुओं के छक्के छूट रहे
विधान मंडल में मंत्रियों का ‘इंप्रेशन’ बनाने में बाबुओं के छक्के छूट रहे हैं। न चाय पीने की फुर्सत है और न पान खाने की। यह हाल कमोबेश हर उस सरकारी महकमे का है जिनसे जुड़े प्रश्नों का जवाब पाने को...
विधान मंडल में मंत्रियों का ‘इंप्रेशन’ बनाने में बाबुओं के छक्के छूट रहे हैं। न चाय पीने की फुर्सत है और न पान खाने की। यह हाल कमोबेश हर उस सरकारी महकमे का है जिनसे जुड़े प्रश्नों का जवाब पाने को बेताब विपक्षी सदस्य मंत्री के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं। सवाल छूटते ही मंत्री जवाब पढ़ने लग जाते हैं। पर, सबसे बड़ा टॉस्क है कि इन जवाबों से सदस्य संतुष्ट हो जाएं और माननीय मंत्री जी की प्रतिष्ठा पर भी आंच न आए। ऐसे जवाबों को तैयार करने में कर्मचारियों और बाबुओं के हाथ-पांव फूल रहे हैं। मंत्री से अधिक टेंशन अब कर्मचारी पाले बैठे हैं। तरह-तरह की शंकाएं मन में घुमड़ रही हैं। जवाब पर विपक्ष ने अगर मंत्री को घेर लिया तो क्या होगा? जवाब पर पूरक प्रश्नों का आकार और प्रकार क्या हो सकता है?ड्ढr ड्ढr शतरंज की बाजियों की तरह टेबुल पर फाइल पसारे बाबू सुबह से लेकर देर शाम तक इसी मजगमारी में जुटे हैं। तरह-तरह के प्रश्न और उसके मुतल्लिक जवाब तैयार करना। कर्मचारियों और बाबुओं की परेशानी यह है कि मंत्री अपनी छवि बनाए रखने के लिए जवाब ‘डिटेल’ में परोसना चाहते हैं। उधर कर्मचारी मानते हैं कि मंत्री जितना डिटेल में जाते हैं उनकी परेशानी और बढ़ जाती है। हर जवाब से नए प्रश्न के तार जुड़ जाते हैं। बच के निकल लिए तो ठीक वर्ना फिर नए सिरे से उठाए गए उलझाउ सवाल के जवाब तैयार करने की जिम्मेदारी कर्मचारियों के मत्थे ही आ गिरती है। तैयार जवाब पहले विभागीय सचिव पढ़ते हैं। वह अपने तरीके से उसमें और तथ्यों को जोड़ने का निर्देश देते हैं। यहां से हरी झंडी मिली तो फिर मंत्री जी उसे परखते हैं। संतुष्ट हो गए तो ठीक वर्ना उनके स्तर से भी बदलाव का निर्देश जारी होता है। कई मंत्रियों की डिमांड है कि जवाब ‘बोल्ड’ अक्षरों में तैयार किए जाएं। ताकि सदन में जवाब पढ़ते वक्त उन्हें परेशानी न हो।