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वेतन बढ़ाने की कवायद

छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद, जैसी कि संभावना थी, सरकारी बाबू हँस रहे हैं और एक्सपर्ट बिरादरी रो रही है। बाबुआें को उम्मीद थी कि चुनावी वर्ष में दरियादिली पर उतारू सरकार खजाने का मुँह खोल देगी...

 वेतन बढ़ाने की कवायद
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद, जैसी कि संभावना थी, सरकारी बाबू हँस रहे हैं और एक्सपर्ट बिरादरी रो रही है। बाबुआें को उम्मीद थी कि चुनावी वर्ष में दरियादिली पर उतारू सरकार खजाने का मुँह खोल देगी और वैसा ही हुआ। उधर, एक्सपर्ट बिरादरी को अंदेशा था कि पिछले वेतन आयोगों की तरह यह रिपोर्ट भी बेहद खर्चीली और घाटा बढ़ाने वाली होगी और वे भी नोट कर रहे हैं कि वे गलत नहीं थे। जाहिर है अब आने वाले हफ्तों में एक तरफ जहां कर्मचारीगण अपने बेसिक, डीए और एचआरए के नए हिसाब-किताब में मशगूल रहेंगे, वहीं अर्थशास्त्री पब्लिक को यह समझाने की कोशिश करेंगे कि किस तरह इस दरियादिली का बिल आम करदाता को अपनी जेब से भरना होगा और किस तरह राजकोषीय अनुशासन की गाड़ी आने वाले कई वषरे के लिए पटरी से उतर जाएगी। अब एक सवाल आने वाले दिनों में कई बार, कई तरह से उभरेगा कि अगर वाकई नए वेतनमान जनवरी 2006 से लागू होने हैं तो दो वषरे का बकाया और मौजूदा वर्ष की देनदारी मिलाकर बनी कुल लगभग 30 हजार करोड़ की रकम कैसे और कहां से जुटाई जाएगी? यह सवाल जायज है क्योंकि 1में पांचवे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की कवायद में राजकोषीय घाटाीसदी के और राजस्व घाटा 7 फीसदी के बेहद चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया था और केंद्रीय उदारता के अनुकरण पर मजबूर कई राज्य सरकारें तो दीवालिया होने के कगार पर पहुंच गई थीं। लेकिन कई दूसरे मोचरे पर भी इस वेतन आयोग ने कमोबेश निराश किया है। क्या यह रिपोर्ट प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों पर खरी उतरती है? क्या कर्मचारियों के वेतनमानों को उनके कामकाज के स्तर से जोड़ने का बहुप्रतीक्षित कदम उठाया गया? क्या स्टाफ कटौती और नई भर्ती पर अंकुश की सिफारिशों पर अमल हुआ? प्राइवेट सेक्टर के मुकाबले उच्च सरकारी पदों पर वेतनमान बहुत कम थे और प्रतिभा को रोके रखने के लिए पैसा बढ़ाने की सख्त जरूरत थी, यह तो समझा जा सकता है। लेकिन सी और डी श्रेणी के वेतनमानों में भी क्या भारी-भरकम वृद्धि अनिवार्य थी क्योंकि जगजाहिर है कि प्राइवेट सेक्टर के मुकाबले ये कर्मचारी कहीं ज्यादा वेतन लेते हैं? सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इन सिफारिशों से सरकारी दफ्तरों की उस बदनाम कार्यसंस्कृति में सुधार की उम्मीद बंधेगी, जो हर रोज न जाने कितने मुसद्दीलालों को अपना शिकार बनाती है? अनुशासनहीनता, गैरहाजिरी, कामचोरी और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात महकमे जवाबदेह बनेंगे, इसकी कोई पुख्ता आशा इस रिपोर्ट को देखकर नहीं उपजती और यही उसका मायूस करने वाला पहलू है।ं

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