पहाड़ पर लगाया फलदार बगीचा
पत्थर पर दूब जमाने की बात कौन कहे उसने तो पहाड़ पर बागीचा ही लगा रखा है। दूध की नदी भी बहती है वहां तो थोड़ा नीचे उतरने पर मछलियों का भंडार भी मिलेगा। बागीचा भी जंगली पेड़ों का नहीं, फलदार पेड़ों का।...
पत्थर पर दूब जमाने की बात कौन कहे उसने तो पहाड़ पर बागीचा ही लगा रखा है। दूध की नदी भी बहती है वहां तो थोड़ा नीचे उतरने पर मछलियों का भंडार भी मिलेगा। बागीचा भी जंगली पेड़ों का नहीं, फलदार पेड़ों का। एक-से-एक बढ़िया क्वालिटी के आम के लगभग तीन हजार पेड़ हैं तो इलाहाबादी अमरूद के लगभग डेढ़ हजार पेड़ भी। नीबू और मिर्च की भी लहलहाती फसलें। पहाड़ पर खेती कर प्रति वर्ष लाखों कमाने वाले उस शख्सियत का नाम है नूनेश्वर मरांडी, ग्राम बाबूमहल, प्रखंड चानन और जिला बांका ।ड्ढr ड्ढr पहाड़ पर ही वह लगभग दो दर्जन दुधारू मवेशियों के साथ डेयरी चलाता है। ठीक नीचे उसने दो तालाब खोद रखे हैं। एक में पानी जमाकर ‘ड्रिप’ विधि से पौधों की सिंचाई की जाती है, दूसरे में मछली पालन। सरकार ने इस काम के लिए उसे सम्मानित भी किया है और वह बांका जिले का ‘किसान भूषण’ है। लेकिन उसे सरकारी सम्मान से कोई लेना- देना नहीं। धुन का पक्का वह किसान तो खेती की हर नई विधि की जानकारी प्राप्त कर ही सरकार को साधुवाद देता है। और उसे धरती पर उतारकर गर्व के साथ सरकार का भी सपना साकार करता है। कृषि विभाग के अधिकारी भी उसकी मेहनत की दाद देते हैं।ड्ढr ड्ढr बामेती के निदेशक डा. आरके सोहाने और संस्थान के रिसर्च एसोसिएट सोमेश कुमार कहते हैं कि नूनेश्वर मरांडी जिस प्रकार से खेती करते हैं वह बेमिसाल है। दूसरे किसान भी अगर इसी लगन और मेहनत से खेती करें तो पहाड़ी और मैदानी इलाकों का फर्क ही मिट जाएगा और कायाकल्प हो जाएगा पहाड़ी इलाके के किसानों का। बांका जिले के कृषि प्रसार अधिकारी अरविंद कुमार बताते हैं कि पहाड़ पर कुल 1एकड़ की नूनेश्वर की भूमि तीन टुकड़ों में बंटी है। वहां पूरी भूमि पर उसने बागवानी कर रखी है। कुछ जमीन नीचे है तो उसमें पारंपरिक खेती भी करता है।