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सारण में नहीं मिल रहे आलू के खरीदार

ल तक जो आलू मुसीबतों में मददगार और सालोंभर रोटी-दाल सुलभ कराने का जरिया बना था, आज किसानों के लिए परशानी का सबब बन गया है। खरीदारों के अभाव में सड़ रहे आलू के ढेर को देख-देखकर माथा पीटने के सिवा...

 सारण में नहीं मिल रहे आलू के खरीदार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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ल तक जो आलू मुसीबतों में मददगार और सालोंभर रोटी-दाल सुलभ कराने का जरिया बना था, आज किसानों के लिए परशानी का सबब बन गया है। खरीदारों के अभाव में सड़ रहे आलू के ढेर को देख-देखकर माथा पीटने के सिवा किसानों को कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। सालों भर सब्जी खासकर आलू की खेती कर आमदनी से जीवन-बसर करने वाले किसान इस वर्ष भविष्य की चिंता में डूब गए हैं।ड्ढr ड्ढr वजह स्पष्ट है-आज कौड़ी के भाव बिक रहा है आलू। सबसे विकट समस्या यह उत्पन्न हो गई है कि नजदीक के एक भी कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने की जगह नहीं है। ऐसे में आलू को सुरक्षित रख पाना भी मुश्किल हो रहा है। मालूम हो कि सारण जिले के दरियापुर प्रखंड के बेला, दुर्बेला, नगवां, बढ़मुआ, मानुपुर, भगवानपुर, खानपुर, रघुपुर आदि गांवों समेत आसपास के प्रखंडों में बड़े पैमाने पर आलू की खेती होती है। विगत कुछ वर्षो से आलू की खेती से मुनाफा कमा चुके यहां के किसानों ने इस बार दोगुने खेतों में आलू की खेती किए थे। जिनके पास थोड़ी मात्रा में जमीन है वे ठेके-बंटाई के खेतों में आलू लगाए थे।ड्ढr ड्ढr पैदावार भी अच्छी हुई, किन्तु खरीदार ही नहीं मिल रहे हैं। किसानों के घरों व दालानों मेंआलू के ढेर जमा हो गए हैं। पहले जहां कोलकाता, झारखंड और पटना के व्यापारी यहां आकर अलू की खरीदारी करते थे वहीं आज स्थानीय व्यापारी भी आलू खरीदने को तैयार नहीं हैं। विश्वंभरपुर पंचायत के उपमुखिया लक्ष्मण सिंह कहते हैं कि चार एकड़ में आलू की खेती किए थे। लगभग 60 हजार रुपए की पंजी लगी किन्तु उन्हें वापस पूंजी आने की संभावना भी नहीं है। श्री सिंह का कहना है कि सरकार जैसे गेहूं-चावल के दाम निर्धारित करती है वैसे आलू का दाम भी निर्धारित करे या आलू को सुरक्षित रखने के लिए प्रखंड स्तर पर कोल्ड स्टोरज खुलवाए। किसान मदन राम बताते हैं कि वे इस बार महाजन से 30 हजार रुपए कर्ज लेकर दो एकड़ में आलू की खेती किए थे। अब तक उनका आधा आलू रखरखाव के अभाव में सड़ चुका है। वे बताते हैं कि किसी भी दाम में ग्राहक मिलता तो वे बेचकर महाजन का कुछ भी कर्ज चुकाते ताकि सूद कम देना पड़ता। मुशहरी गांव के युवा कृषक बबलू सिंह का कहना है कि वे इस बार आलू बेचकर कोई ठोस कारोबार करना चाहते थे किन्तु उनका सपना चकनाचूर हो गया। इंद्रदेव सिंह बताते हैं कि इस बार भी बेटी की शादी नहीं हुई। वे लड़का भी ढूंढ़ लिए थे किन्तु आलू ने धोखा दे दिया। उन्हें उम्मीद थी कि पिछले साल की तरह इस बार भी आलू से अच्छी कमाई होगी पर ऐसा नहीं हुआ।ं

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