किताब दुकानों में धक्के खा रहे गार्जियन, बच्चे भी परशान
राजधानी के गार्जियन इन दिनों दोहरी मुसीबत झेल रहे हैं। वे दफ्तर से छुट्टी लेकर दुकान से बच्चों की किताब खरीदने पहुंचते हैं। वहां जाकर पता चलता है कि केवल चार किताबें ही मिलेंगी। साथ में रिफरंस बुक...
राजधानी के गार्जियन इन दिनों दोहरी मुसीबत झेल रहे हैं। वे दफ्तर से छुट्टी लेकर दुकान से बच्चों की किताब खरीदने पहुंचते हैं। वहां जाकर पता चलता है कि केवल चार किताबें ही मिलेंगी। साथ में रिफरंस बुक लेना जरूरी है। यदि किताब फटी है, तो बदली नहीं जायेगी। इसके अलावा स्टीकर और कॉपी भी उसी दुकान से खरीदनी होगी। कोई गार्जियन यदि दूसरी दुकान में जाकर दो या तीन किताब मांगता है, तो उसे टका सा जवाब दे दिया जाता है। इतना ही नहीं, किताब बेचनेवालों की सभी शर्तो को मंजूर करना गार्जियन की मजबूरी बन गयी है।ड्ढr दूसरी तरफ घर में बच्चे तंग कर रहे हैं। उनके स्कूलों में नये सत्र आरंभ हो गये हैं, लेकिन किताबों की कमी सामने आ रही है। गार्जियन अपर बाजार से लेकर लोवाडीह और अन्य जगहों की खाक छान रहे हैं। दुकानदार तीन दिन बाद आकर बाकी किताबें ले जाने की बात करते हैं, यानी पैसा आज जमा करो, किताबें तीन दिन बाद मिलेंगी।ड्ढr दूसरी मजबूरी यह है कि किसी भी दुकान से किताबों का पूरा सेट खरीदना पड़ रहा है। कतार में धक्के खाकर दुकान के काउंटर के सामने पहुंचे, तो पता चलेगा कि केवल चार किताबें मिलेंगी। उन्हें भी देखने-परखने का मौका नहीं मिलेगा। पक्की रसीद भी नहीं दी जायेगी। आवाज उठायी, तो दुकानदार आगे जाने को कहेगा। खाली हाथ लौटे, तो घर में बच्चे सवाल करंगे। यह परशानी आज रांची के लगभग हर गार्जियन की है।ं