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महंगाई के मोर्चे पर

ड़े कदम की उम्मीद तो खर पहले से ही थी। लेकिन रिÊार्व बैंक ने जिस तरह से आरक्षित नगदी अनुपात यानी सीआरआर को आधा फीसदी बढ़ाया उसका समय एक साथ कई बातें कहता है। उम्मीद यही थी कि 2अप्रैल को जब रिÊार्व...

 महंगाई के मोर्चे पर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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ड़े कदम की उम्मीद तो खर पहले से ही थी। लेकिन रिÊार्व बैंक ने जिस तरह से आरक्षित नगदी अनुपात यानी सीआरआर को आधा फीसदी बढ़ाया उसका समय एक साथ कई बातें कहता है। उम्मीद यही थी कि 2अप्रैल को जब रिÊार्व बैंक नई क्रेडिट पॉलिसी की घोषणा करगा तो उसमें ऐसे कई कड़े कदम होंगे। पर यह अनुमान किसी को नहीं था कि इसके 12 दिन पहले ही रिÊार्व बैंक के नीति नियामक अचानक सक्रिय हो जाएंगे। इसलिए अब यह सवाल तो खर पूछा ही जा रहा है कि ऐसी कौन सी आफत आ गई थी कि 12 दिन का इंतजार भी नहीं किया जा सका। इसी के साथ एक यह अटकल भी लगने लगी है कि रिÊार्व बैंक सचमुच में ज्यादा ही कड़े कदम उठाना चाहता है और इस कड़े कदम की पहली किस्त पेश कर दी गई है। रिÊार्व बैंक ही नहीं, पूरी सरकार ही जिस तरह से महंगाई को लेकर अचानक सक्रिय हो गई है वह कई तरह से हैरत में डालने वाला तो है ही। वित्तमंत्री पी चिदंबरम का यह कहना कि महंगाई को काबू में रखने के लिए सरकार विकास दर को भी दांव पर लगा सकती है, यह तो बताता ही है कि सरकार के चेहर पर महंगाई को लेकर उभर रही चिंता की लकीरें वास्तव में कितनी गहरी हैं। कभी वह चावल और स्टील के निर्यात पर पाबंदी लगा रही है, कभी खाद्य तेल के आयात पर सीमा शुल्क खत्म कर रही है और उस पर भी बात न बनने पर सब्सिडी जसी घोषणाएं भी कर रही है। एसे कदमों की खूबियां और खामियां गिनाई जा सकती हैं, लेकिन सवाल इसके पीछे की नीति और राजनीति का है। यह ठीक है कि इसे देखना सरकार का ही काम होता है कि महंगाई इतनी न बढ़ जाए कि गरीबों के लिए जीने के साधन जुटाना ही दुश्वार हो जाए। और इस काम को अंजाम देने की एक किताबी शैली यह हो सकती है कि सरकार महंगाई से निपटने के लिए क्रेडिट पॉलिसी के औजार का इस्तेमाल कर। इससे महंगाई के कई आंकड़े सुधर और संवर भी सकते हैं। लेकिन हमेशा ही इसका अर्थ यह नहीं होता कि यह सब गरीबों की जेब को भी राहत दे ही देगा। फिलहाल दिक्कत यह है कि बाजार में जरूरी खाद्य पदार्थो की किल्लत है। कुछ तो इसलिए कि उत्पादन कम हुआ था और कुछ इसलिए भी कि दुनियाभर में उनके आसार अच्छे नहीं है। इसकी वजह से उनकी कीमतें चढ़ी हुई हैं। जाहिर है कि इस मोर्चे पर क्रेडिट पॉलिसी से कुछ हासिल नहीं हो सकता। उल्टे क्रेडिट पॉलिसी के तरीके विकास दर को जरूर झटका दे सकते हैं। यह भी ठीक है कि नई फसल आते ही हालात सुधरंगे। पर हालात फिर न बिगड़ें, इसके लिए हमें क्रेडिट पॉलिसी की नहीं एक अच्छी और भविष्य की जरूरत के हिसाब से बनी कृषि नीति की जरूरत है।ं

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