भ्रष्टाचार का खेल
भारतीय हॉकी संघ के महासचिव के. ज्योतिकुमारन का एक स्टिंग ऑपरशन में पकड़ा जाना सिर्फ किसी एक व्यक्ित के भ्रष्ट होने की कहानी नहीं है। इस घटना से भारतीय खेलों के प्रशासन और नियमन की गड़बड़ियों की खबर...
भारतीय हॉकी संघ के महासचिव के. ज्योतिकुमारन का एक स्टिंग ऑपरशन में पकड़ा जाना सिर्फ किसी एक व्यक्ित के भ्रष्ट होने की कहानी नहीं है। इस घटना से भारतीय खेलों के प्रशासन और नियमन की गड़बड़ियों की खबर मिलती है। के. ज्योतिकुमारन, अध्यक्ष केपीएस गिल के करीबी और उनके बाद हॉकी संघ के दूसर सबसे ताकतवर अधिकारी थे। किसी जमाने में बैंक में छोटी मोटी नौकरी करने वाले ज्योतिकुमारन की ताकत का रहस्य यह था कि वे दक्षिण के राज्यों के हॉकी पदाधिकारियों के वोट सुनिश्चित कर सकते थे। वोट की राजनीति में माहिर ज्योतिकुमारन की हैसियत यह थी कि वे किसी खिलाड़ी का राष्ट्रीय टीम में चयन करवा सकते थे क्योंकि चयन समिति में भी गिल-योतिकुमारन के चहेते लोग होते हैं, जो उन्हें ‘न’ नहीं कहते। इस तरह हॉकी संघ के सर्वोच्च पदों से लेकर तो चयन समिति तक में क्षुद्र राजनीति और उसके स्वाभाविक सह उत्पाद की तरह भ्रष्टाचार व्याप्त है ज्योतिकुमारन के स्टिंग ऑपरशन ने उसकी एक झलक दिखाई है। लेकिन यह स्थिति सिर्फ हॉकी संघ की ही नहीं, भारत के तमाम खेल संगठनों की है, जहां घाघ पदाधिकारी वोटों का गणित जमाते हुए सालों तक कब्जा जमाए रहते हैं। सरकार इस मामले में यह कहते हुए पल्ला झाड़ लेती है कि खेल संगठन तो स्वायत्त हैं, सरकार उनके काम में कैसे हस्तक्षेप कर, लेकिन असली मुद्दा यह है कि सरकार में और तमाम संगठनों में हर स्तर पर वे ही लोग हैं। लगभग सार संगठनों के शीर्ष पर ताकतवर नेता ही हैं जिनका सरकार में रसूख है और सरकार उन पर कोई नियंत्रण नहीं रख सकती। हॉकी संघ के केपीएस गिल इसलिए विवादों में रहते हैं क्योंकि वे एकाधिकार रखने भर में नहीं, उसे पुलिसिया अंदाज में दिखाने में भी भरोसा करते हैं, वरना ज्यादातर खेल संघों की हालत हॉकी संघ की तरह ही है। एक ज्योतिकुमारन पकड़े गए, लेकिन हर संघ में कई ज्योतिकुमारन मौजूद हैं। जहां तक केपीएस गिल का सवाल है, वे सुरक्षित हैं, और जब तक वोट, पैसे और बाहुबल की राजनीति खेल संघों में है तब तक नए ज्योतिकुमारन भी पैदा होते रहेंगे।