नोटों पर भारी विकास की पुकार
नोटों की गड्डी पर भारी पड़ रही है विकास की पुकार। दोगुनी कीमत देकर भी बिहारी मजदूरों को खरीद नहीं पा रहे हैं पंजाब और हरियाणा के किसान और ठेकेदार। यह हाल उन प्रदेशों का है जहां उनकी तय कीमतों पर ही...
नोटों की गड्डी पर भारी पड़ रही है विकास की पुकार। दोगुनी कीमत देकर भी बिहारी मजदूरों को खरीद नहीं पा रहे हैं पंजाब और हरियाणा के किसान और ठेकेदार। यह हाल उन प्रदेशों का है जहां उनकी तय कीमतों पर ही कल तक बिहारी मजदूर अपना पसीना बहा रहे थे। पंजाब और हरियाणा में अब ढूंढे नहीं मिल रहे हैं मेहनतकश बिहारी मजदूर।ड्ढr ड्ढr लुधियाना का यह हाल है कि कई जगहों पर खेतों में गेंहू की फसलें लहलहा रही हैं लेकिन अभी तक उनकी कटाई करने वाला कोई नहीं। बताया जा रहा है कि पिछले साल की तुलना में अधिक मजदूरी का ऑफर देने पर भी बात नहीं बन रही। वहां के किसान, व्यापारी और अधिकारी अब बिहारी मजदूरों की कमी को प्रदेश के लिए बड़ी समस्या मानने लगे हैं। जानकारों की मानें तो लुधियाना में पिछले साल एक एकड़ में लगी फसल की कटाई के लिए 15 सौ से 17 सौ रुपए की मजदूरी देने पर मजदूरों की बाढ़ आ जाती थी। इस बार बिहारी मजदूरों की वापसी से मामला उलटा पड़ता दिख रहा है। ढाई हजार रुपए तक की मजदूरी देने पर भी कटाई के लिए मजदूरों के लाले पड़े हैं। वहीं किसानों की समस्या यह है कि उन्हें सिर्फ कटाई के लिए ही नहीं बल्कि पुआलों की गट्ठर बांधने के लिए मजदूर चाहिए। एक एकड़ खेत से 8-10 क्िवंटल गट्ठर निकलते हैं। ऐसे में वहां के किसानों की हालत पस्त हो रही है। मजदूरों की कमी से परशान किसान और व्यापारी इस बार बिहार में अच्छी फसल को भी इसका बड़ा कारण मान रहे हैं। दूसरी सबसे खास वजह यह बतायी जा रही है कि थोड़ी कम मजदूरी पर ही सही बिहारी मजदूर अब अपने अपने घर में रहकर ही काम करना चाह रहे हैं।