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चर्चा, पर्चा और खर्चा में पीछे चल रही है कांग्रेस

चुनाव के प्रचार युद्ध में कांग्रेस पीछे हो गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अब उन्हें प्रचार अभियान तेज करने की ही नहीं बल्कि बडे़ पैमाने पर क्राइसिस मैनेजमेंट की भी जरूरत है। दूसरे दल...

चर्चा, पर्चा और खर्चा में पीछे चल रही है कांग्रेस
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 18 Nov 2014 07:10 PM
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चुनाव के प्रचार युद्ध में कांग्रेस पीछे हो गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि अब उन्हें प्रचार अभियान तेज करने की ही नहीं बल्कि बडे़ पैमाने पर क्राइसिस मैनेजमेंट की भी जरूरत है। दूसरे दल जहां हाईटेक प्रचार कर रहे हैं और अपनी अपील अवाम के बड़े हिस्से तक पहुंचा चुके हैं। वहीं कांग्रेस क्या प्रचार करेगी, इसके लिए बनाया गया मेनिफेस्टो तक जारी नहीं हुआ है जबकि पहले चरण के चुनाव में एक हफ्ते से भी कम का समय रह गया है।

प्रचार की योजना बनाने वाली चुनाव अभियान समिति की अभी घोषणा ही की जा सकी है। इस समिति को बैठक कर रणनीति तय करने में अभी हफ्ते भर लगने वाले हैं।

गठबंधन तक तय नहीं
कांग्रेस के नेता सीटों की साझेदारी की जो एकतरफा घोषणा कर रहे हैं, उससे राजद और जदयू के नेता इत्तफाक नहीं रखते हैं। तीनों दलों के नेता गठबंधन के तहत सीटों की अलग-अलग संख्या की घोषणा कर रहे हैं। इस कारण कांग्रेस उम्मीदवारों की छह सूची जारी करने के बाद भी सभी सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतार पाई है। 67 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की बात कहने वाले कांग्रेस नेता 59 उम्मीदवारों की ही घोषणा कर पाए हैं। आगे आठ की जगह केवल दो सीटों टुंम्डी और बोकारो से प्रत्याशी देने की चर्चा है। क्योंकि, कांग्रेस के दावे वाली बाकी छह सीटों पर घटक दलों ने उम्मीदवार उतार दिए हैं।

प्रचार की रणनीति तक तय नहीं
कांग्रेस के प्रचार का अभी खाका तक तय नहीं हुआ है। गुमला और लोहरदगा के लिए दो एलईडी वाहन जरूर भेजे गए हैं। लेकिन वे उम्मीदवारों के निजी प्रयास हैं। कांग्रेस के पोस्टर तक नजर नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस सोनिया-राहुल के नाम पर चुनाव लड़ेगी या पिछली यूपीए सरकार की उपलब्धियां भुनाएगी, यह भी तय नहीं है। राज्य सरकार के पिछले एक साल के कार्यकाल को अपने पक्ष में प्रचारित करने के तरीकों के बार में भी पार्टी नेता एकमत नहीं हो सके हैं।

नेताओं की जारी है मशक्कत
कांग्रेस में चुनावी राजनीति के अनुभवी नेताओं का कहना है कि प्रचार के तीन मोर्चे होते हैं-चर्चा, पर्चा और खर्चा। चर्चा में पार्टी मात खा चुकी है। पर्चा का इंतजाम भी नहीं हुआ है। खर्च का जुगाड़ करने में भी उम्मीदवारों को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। अब केवल राष्ट्रीय नेतृत्व से मिलने वाले आर्थिक उपहार का ही इंतजार है।

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