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सूबे में एक साल में 40 से घटकर 18 फीसदी हो गई घटियां दवाएं

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आकड़ों (2001) के अनुसार देश में बिकने वाली 35 फीसदी दवाएं नकली (सब स्टैंडर) होती हैं। इसके पांचवे हिस्से में गलत तत्व मिले होते हैं। जबकि, झारखंड में स्टेट ड्रग...

सूबे में एक साल में 40 से घटकर 18 फीसदी हो गई घटियां दवाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 17 Nov 2014 07:28 PM
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आकड़ों (2001) के अनुसार देश में बिकने वाली 35 फीसदी दवाएं नकली (सब स्टैंडर) होती हैं। इसके पांचवे हिस्से में गलत तत्व मिले होते हैं। जबकि, झारखंड में स्टेट ड्रग टेस्टिंग लेबोरेटरी, रांची की जांच रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष जहां 40 फीसदी दवाएं सब स्टैंडर थी, वहीं इस साल यह आकड़ा घटकर 18 फीसदी हो गई है। लैब के ड्रग डायरेक्टर एसपी सिन्हा के मुताबिक पिछले वर्ष 2013 में ड्रग इंस्पेक्टर द्वारा जब्त किए गए 550 नमूनों की जांच की गई थी, जिसमें लगभग 216 नमूने सब स्टैंडर पाए गए थे।

इस साल, 2014 में अब तक लगभग 460 नमूनों की जांच की गई हैं, जिसमें लगभग 82 नमूने सबस्टैंडर पाए गए हैं। सवाल यह है कि महज एक साल में ही घटिया दवा में इतनी कमी कैसे आ गई? नाम न छापने की शर्त पर कुछ अधिकारियों ने बताया कि ये सब सैंपलिंग का कमाल है। पहले जहां नकली दवा पकड़ने के लिए सैंपल लिए जाते थे, अब संख्या पूरा करने के लिए सैंपलिंग की जाती है। कुछ ऐसे सैंपल लिए जाते हैं जिसके सब स्टैंडर होने की संभावना कम हो।

घटिया दवाओं के 40 मामले दर्ज
जनवरी में रिटायर हो चुके पूर्व डायरेक्टर इन चीफ (ड्रग) अंजनी कुमार कहते हैं जनवरी तक घटिया दवा को लेकर लगभग 40 केस दर्ज किए गए। लैब टेस्टिंग रिपोर्ट के आधार पर दवा निर्माता, दवा कंपनी व विक्रेता भी शामिल हैं। इस साल जांच में घटिया पाई गई दवा निर्माताओं के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी है।

रांची जेल में सप्लाई हुई थी नकली दवा
झारखंड गठन के बाद से अब तक राज्य में पूरी तरह नकली दवा के एक ही मामले मिले हैं। वर्ष 2009 में रांची जेल में बोकारो से सप्लाई की गई ओ फ्लोक्साशिन व एरिथ्रोमाइसिन पूरी तरह नकली पाए गए थे। सैंपल पकड़ने वाले ड्रग इंस्पेक्टर सुरेंद्र प्रसाद कहते हैं कि सरकारी कंपनी ओडीपीएल द्वारा निर्मित इस दवा में ओ फ्लोक्साशिन एवं एरिथ्रोमाइसिन तत्व थे ही नहीं।

इस मामले में सदर थाने में प्राथमिकी भी दर्ज है। ड्रग डायरेक्टर एसपी सिन्हा कहते हैं गत वर्ष ड्रग लेबोरेटरी में तीन ऐसे दवा सैंपल की जांच कई जिसमें सिप्रोफ्लोक्साशिन व प्राविडीन आयोडिन था, लेकिन जांच में ये तत्व नगन्य पाए गए। सिन्हा कहते हैं गॉज, बैंडेज और कॉटन में ज्यादा ही नकली पाए जाते हैं। कई नमूने ऐसे मिले हैं, जिसमें एब्जॉरवेंट न के बराबर पाया गया है।

क्या है सजा का प्रावधान
भारत सरकार ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक में सुधार कर नकली दवा के कारोबार में शामिल लोगों की अधिकतम सजा उम्र कैद कर दी है। इससे जुड़े कुछ अपराधों को गैर जमानती करार देते हुए जुर्माने की रकम भी 10 लाख कर दी गई।

वाजपेई सरकार ने डेथ पेनल्टी की सहमति
नकली दवा के धंधे से जुड़े लोगों के लिए वर्ष 2003 में आरए मशालकर कमेटी ने डेथ पेनल्टी की सिफारिश की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की कैबिनेट ने इस पर सहमति भी प्रदान कर दिया था, लेकिन संसद से यह प्रस्ताव तब पास नहीं हो सका था।

क्या होता है नुकसान
आईएमए अध्यक्ष डॉ जेके मित्रा कहते हैं नकली दवाओं में जरूरी तत्व दर्शाई गई मात्रा के अनुसार नहीं होते हैं। जिसके कारण हम दवा खा रहे होते हैं, लेकिन उसका फायदा नहीं होता। आगे चलकर शरीर में रेसिसटेंस भी डेवलप हो जाता है, दवा का असर बंद हो जाता है। कई बार नकली के धंधेबाज एक्सपायर्ड दवा भी बेच देते हैं। इसमें कुछ तत्व के असर खत्म हो चुके होते है तो कुछ में टॉक्सिक सब्सटांसेज डेवलप हो चुके होते हैं। जिससे मरीज की मौत भी संभव है।

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