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पहले चरण में 9 फीसदी महिलाएं मैदान में

पहले चरण में 13 सीटों पर हो रहे चुनाव में उम्मीदवारों ने पूरी ताकत झोंक रखी है। चुनावी मैदान में करीब 9 फीसदी महिलाएं हैं। यदि पिछले विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो इन 13 सीटों पर करीब 8 फीसदी महिला...

पहले चरण में 9 फीसदी महिलाएं मैदान में
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 17 Nov 2014 07:20 PM
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पहले चरण में 13 सीटों पर हो रहे चुनाव में उम्मीदवारों ने पूरी ताकत झोंक रखी है। चुनावी मैदान में करीब 9 फीसदी महिलाएं हैं। यदि पिछले विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो इन 13 सीटों पर करीब 8 फीसदी महिला उम्मीदवार थीं। ऐसे में देखा जाए तो पांच साल में महिलाओं के चुनाव लड़ने के रुझान में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है।

पिछले चुनाव में इन विधानसभा से क्षेत्रों से केवल एक महिला उम्मीदवार जीतने में सफल रही थीं। इसके अलावा दो महिला प्रत्याशी ही जमानत बचाने में कामयाब हुई थीं। इस बार क्या नतीजा होगा, यह तो 23 दिसंबर को पता चलेगा, लेकिन महिलाओं की उम्मीदवारी न बढम्ने को लेकर राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय महिलाएं असंतुष्टि जताती हैं। उनका कहना है कि पुरुष प्रधान समाज होने की वजह से उन्हें सहयोग नहीं मिलता है।

चुनाव लड़नेवालों की संख्या घटी
पहले चरण के चुनाव में चतरा, गुमला, बिशुनपुर, लोहरदगा, मानकी, लातेहार, पांकी, डालटनगंज, विश्रामपुर, छत्तरपुर, गढम्वा, भवनाथपुर व हुसैनाबाद में वोट डाले जाएंगे। 2009 के चुनाव में इन सीटों पर 252 उम्मीदवार मैदान में थे, जिनमें 20 महिलाएं (करीब 8 फीसदी) थीं। इस बार इन सीटों पर 199 उम्मीदवार हैं जिनमें 18 महिला हैं। इस चुनाव में महिला उम्मीदवार कितना सफल हो पाती हैं, यह तो समय बताएगा, लेकिन 2009 में 15 महिलाओं को दो हजार से कम वोट मिले थे। जबकि 1000 से भी कम वोट पाने वाली सात महिलाएं थीं।

महिलाओं को क्यों नहीं मिलता टिकट
चुनाव में महिलाओं को टिकट कम मिलने के बारे में एक महिला जो चुनाव मैदान में हैं और दूसरी जिन्हें दावेदारी के बाद भी टिकट नहीं मिला, के विचार लगभग एक ही हैं। वे कहती हैं, राजनीतिक दल महिलाओं को चुनाव में टिकट देना नहीं चाहते हैं। वे महिलाओं की क्षमता पर भरोसा नहीं करते जबकि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा सक्षम हैं। प्रचार करने या चुनाव लड़ने में परेशानी नहीं होती है। जरूरत है मानसिकता बदलने की।

कांग्रेस में टिकट की दावेदार आभा सिन्हा ने कहा कि राजनीतिक दल महिलाओं को टिकट देने से हिचकते हैं। यह सही है कि महिलाओं के पास संसाधन की कमी होती है, लेकिन थोड़ी सहायता से ही उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है। वह सक्षम हैं। दरअसल यह पुरुष प्रधान समाज है। समाज की मानसिकता बदलने की जरूरत है।

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