चुनावी गठबंधन की केमिस्ट्री और अंकगणित
विधानसभा चुनाव में गठबंधन को लेकर कई सवाल राजनीतिक फिजां में तैर रहे हैं। इनके जवाब तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही मिलेंगे, लेकिन चुनाव के दरम्यान दलों के बीच बन-बिगड़ रही केमिस्ट्री से चुनावी...
विधानसभा चुनाव में गठबंधन को लेकर कई सवाल राजनीतिक फिजां में तैर रहे हैं। इनके जवाब तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही मिलेंगे, लेकिन चुनाव के दरम्यान दलों के बीच बन-बिगड़ रही केमिस्ट्री से चुनावी परिदृश्य थोड़ा गड्डमड्ड जरूर दिखाई दे रहा है। रांची से दिल्ली तक गठबंधन के तार जुड़ते और टूटते रहे।
सूबे की वर्तमान सरकार में कदम ताल मिलाकर चल रहे दलों में एका नहीं हो पाया। कांग्रेस और झामुमो के बीच बनते-बनते बात बिगड़ गई, वहीं भाजपा-आजसू के बीच बिगड़ते-बिगड़ते बात बन गई। चुनाव घोषणा के पहले ताल ठोकते दल और नेता अब नेपथ्य में चले गए हैं। वहीं सशंकित और सहमे दो राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन के तार जुड़ गए हैं। भाजपा और आजसू के बीच पहला चुनाव पूर्व गठबंधन ने आकार लिया। इसके पहले भाजपा और जदयू के बीच बीस साल पुराना शाश्वत गठबंधन रहा, जो पिछले साल टूट गया। जदयू अब कांग्रेस-राजद के साथ मिलकर लड़ रहा है।
झारखंड में चुनावी गठबंधन टूटने का दर्द कांग्रेस-झामुमो और राजद ने दो-दो बार 2005 और 2009 के चुनावों में झेला है। इन दलों की केमिस्ट्री पहले तो खूब अच्छी दिखाई देती है, लेकिन चुनाव आते-आते सीटों के बंटवारे का अंकगणित खराब हो जाता है। इस चुनाव में भी ऐसा ही हुआ। झामुमो अगुवाई करना चाहता था, लेकिन कांग्रेस को यह सब रास नहीं आया। राजद करे तो क्या करे, आखिर उसे तो तीसरे सहयोगी की भूमिका निभानी है। बहरहाल झामुमो इस चुनाव में भाजपा-आजसू के साथ-साथ कांग्रेस-राजद के खिलाफ भी चुनाव लड़ेगा। साथ लड़ते तो तीनों दलों को इसका लाभ मिलता ही मिलता, अलग-अलग लड़ने के नुकसान का आकलन चुनाव बाद ही करना उचित होगा।
2014 के चुनाव में भाजपा-आजसू गठबंधन एक नई राजनीतिक घटना है। आजसू भले ही लंबे समय तक सत्ता में रहा, लेकिन चुनाव पूर्व किसी ने उसके साथ गठबंधन नहीं बनाया। आजसू के साथ गठबंधन को लेकर प्रदेश भाजपा के कई नेता पक्ष में नहीं थे। बाद में केंद्रीय नेताओं की पहल पर यह गठबंधन हुआ। चुनाव पूर्व इस गठबंधन की केमिस्ट्री पर जरा एक नजर डालें। आजसू को भाजपा ने आठ सीटें दी हैं। सीटिंग छह सीटों में हटिया को छोड़कर सिल्ली, रामगढ़, लोहरदगा, जुगसलाई, चंदनकियारी पुरानी सीटें तथा टुंडी -बड़कागांव दो नई सीटें आजसू के खाते में गई।
सभी सीटिंग सीटों पर आजसू ने इस गठबंधन से आजसू-भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच रोष-प्रतिरोध चलता रहा। गठबंधन के सवाल पर लाभ-हानि का सवाल उठ रहा है। इस गठबंधन से आजसू को राजनीतिक लाभ होगा यह कहना तो वाजिब है, लेकिन क्या भाजपा को इस गठबंधन से नुकसान होगा? भाजपा ने 72 में महज तीन कुर्मी नेताओं को उतारा है। वहीं ब्राह्मण, राजपूत और भूमिहार उम्मीदवारों की संख्या इससे ज्यादा है। पार्टी ने बेरमो से योगेश्वर महतो बाटुल, डुमरी से लालचंद महतो और बाघमारा से ढुल्लू महतो को उतारा है।
बाटुल को छोडम् दें तो शेष दोनों उम्मीदवार भाजपा मूल के नहीं हैं। झारखंड में कुरमी की बड़ी आबादी है। यह सूबे के कई विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करती है। सिल्ली, रामगढ़, बडम्कागांव ऐसे ही विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसके अलावा कई विधानसभा क्षेत्रों में कुरमी वोटरों को आजसू भाजपा के पक्ष में प्रभावित तो कर ही सकती है। ये दोनों दल सरकार में लंबे समय तक साथ-साथ रहे हैं। दोनों दलों के बीच की केमिस्ट्री अच्छी है, ये प्रदेश के नेता भी स्वीकारते हैं। अब 23 दिसंबर को प्रतीक्षा है, जब इस केमिस्ट्री के नए अंकगणित का खुलासा होगा।