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अब न्यायिक सेवा में ओबीसी को आरक्षण का लाभ नहीं

बिहार न्यायिक सेवा में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। अब ओबीसी कोटा के उम्मीदवार आरक्षण की बदौलत न्यायिक सेवा में बहाल होने से वंचित रहेंगे। वहीं एससी एवं एसटी कोटा के...

अब न्यायिक सेवा में ओबीसी को आरक्षण का लाभ नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 10 Nov 2014 07:22 PM
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बिहार न्यायिक सेवा में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। अब ओबीसी कोटा के उम्मीदवार आरक्षण की बदौलत न्यायिक सेवा में बहाल होने से वंचित रहेंगे। वहीं एससी एवं एसटी कोटा के उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ मिलेगा।

पटना हाईकोर्ट ने सोमवार को सरकार के उस संशोधन को निरस्त कर दिया, जिसमें सिविल जज (जूनियर डिविजन) और बिहार सुपीरियर जूडिशियल सर्विस के नियमावली में बदलाव किया था। चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति रेखा एम दोशित व जस्टिस अश्वनी कुमार सिंह की खंडपीठ ने दयानंद सिंह की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाया। आदेश आने के बाद प्रधान अपर महाधिवक्ता ललित किशोर ने हिन्दुस्तान अखबार से बातचीत करते हुए कहा कि इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।

राज्य सरकार ने 25 जून 2009 को नियमावली में संशोधन कर एससी एसटी सहित ओबीसी को न्यायिक सेवा में आरक्षण देने का फैसला लिया था। सरकार की ओर से किए गए संशोधन की वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। अर्जी पर बहस करते हुए वकील चक्रपाणी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 233 व 16(4) का उल्लंघन कर आरक्षण का लाभ न्यायिक सेवा में दिया गया है। यहां तक कि आरक्षण देने के मसले पर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट से परामर्श तक नहीं किया।

हाईकोर्ट के वकील सत्यवीर भारती ने श्री चक्रपाणी की दलील को मंजूर करते हुए कहा कि आरक्षण के मामले में हाईकोर्ट से सरकार ने किसी प्रकार का परामर्श नहीं किया है। बिना परामर्श के सरकार आरक्षण का लाभ नहीं दे सकता। वहीं राज्य सरकार के फैसले को सही ठहराते हुए अपर महाधिवक्ता पीएन शाही ने कोर्ट को बताया कि सरकार एवं हाईकोर्ट के बीच काफी पहले से इस बिंदु पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। इसके बाद ही सरकार ने संशोधन अधिसूचना जारी की है।

सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ने जो परामर्श करने की बात कह रही है, वह सही नहीं है। सरकार से इस मुद्दे पर परामर्श नहीं हुआ है। अदालत ने कहा कि न्यायिक सेवा में आरक्षण देने के पहले इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को सही मायने में न्याय मिल सके। आरक्षण का लाभ दिए जाने से न्याय प्रक्रिया बाधित नहीं हो, इस पर विचार किया जाना अतिआवश्यक है। अदालत ने सरकार की ओर से जारी दोनों अधिसूचना को निरस्त कर दिया।

बता दें कि सरकार ने 25 जून 2009 को अधिसूचना संख्या 6067 से बिहार सिविल सर्विस (जूडिसियल ब्रांच, भर्ती) नियमावली 1955 व अधिसूचना 6069 से बिहार सुपीरियर सर्विस नियमावली 1951 में संशोधन कर एससी एसटी के साथ-साथ ओबीसी को आरक्षण देने का फैसला लिया था।

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