फोटो गैलरी

Hindi Newsटेढ़े दिमाग का अक्खड़ बंदा: रणदीप

टेढ़े दिमाग का अक्खड़ बंदा: रणदीप

फिल्म ‘रंग रसिया’ का  6-7 साल देरी से रिलीज होना इसकी इमेज पर क्या असर डालेगा? मुझे लगता है कि इस देरी से हमें फायदा मिला है। इसके कई कारण हैं। फिल्म के लॉन्च होने से लेकर इसे बनाने...

टेढ़े दिमाग का अक्खड़ बंदा: रणदीप
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 08 Nov 2014 12:50 PM
ऐप पर पढ़ें

फिल्म ‘रंग रसिया’ का  6-7 साल देरी से रिलीज होना इसकी इमेज पर क्या असर डालेगा?
मुझे लगता है कि इस देरी से हमें फायदा मिला है। इसके कई कारण हैं। फिल्म के लॉन्च होने से लेकर इसे बनाने में जो समय लगा, उस दौरान ऐसी फिल्मों के लिए बाजार में जगह काफी कम थी। फिर भी इसके मेकर्स और निर्देशक केतन मेहता ने एक जोखिम उठाया और फिल्म बनाई। हम सब पूरी शिद्दत से उस समय फिल्म पर काम कर रहे थे। ये जानते हुए भी कि दर्शक शायद इस तरह के कलेवर वाली फिल्म के लिए तैयार नहीं हैं। हमें नहीं पता था कि फिल्म बहुत सारे कारणों की वजह से लटक जाएगी या कहिये इसकी रिलीज में देर हो जाएगी। पर अब लगता है कि जो हुआ, अच्छा हुआ। आज इस फिल्म की रिलीज के वक्त लग रहा है कि हमारे पास इसके लिए पहले से बड़ा बाजार और दर्शक वर्ग है।

फिल्म की देरी के क्या कारण रहे?
जैसा कि मैंने पहले कहा कि कई सारे कारण रहे। अब उनमें से एक कारण भी बताने लगूंगा तो उसमें से कई और कारण सामने आएंगे। हम फिल्म की गुणवत्ता के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं करना चाहते थे। केतन मेहता के काम से जो लोग वाकिफ हैं, वे अच्छी तरह से जानते होंगे कि वह अपने काम को कितनी लगन, मेहनत और शिद्दत के साथ करते हैं। उसके बाद अगर कोई फिल्म के साथ छेड़छाड़ करना चाहे या उसकी विषय-वस्तु को समझे बगैर उसे अपने ढंग से पेश करना चाहे तो कौन चुप बैठेगा! बस, हम अपनी चीजों पर अटल रहे और रिलीज के लिए सही समय का इंतजार करते रहे, लड़ते रहे।

आपका इशारा सेंसर बोर्ड की तरफ तो नहीं है?
आप मेरे मुंह से किसी का नाम निकलवाना चाहते हैं शायद...(हंसते हुए)।

इन 6-7 साल में आप में भी तो कई बदलाव आए हैं। इतनी पुरानी फिल्म और आपकी मौजूदा इमेज के साथ दर्शक कैसे तालमेल बैठाएंगे?
हमारी ये फिल्म 6-7 साल नहीं, 100 साल पुरानी है। इसकी कहानी 100 साल से भी ज्यादा पुरानी है, इसलिए ये 6-7 साल वाली बात कोई मायने नहीं रखती। हां, ये सही है कि इस दौरान मेरे अंदर ढेरों बदलाव आए हैं। पुराने पोस्टर और अब के पोस्टर में मेरे चेहरे में दिन-रात का अंतर है। लेकिन ये अंतर आपको फिल्म में पता नहीं चलेगा।

आप सच मानिये, फिल्म में मेरे वो पुराने कहे जाने वाले हाव-भाव, बोलचाल आदि में आपको जरा भी अंतर नहीं दिखेगा।
लंबे संघर्ष के बाद अब आपको भी नामी बैनर मिल रहे हैं। चोटी के सितारों-निर्देशकों के साथ आप काम कर रहे हैं। क्या बॉलीवुड आप पर मेहरबान हो गया है?

कोई किसी पर मेहरबान नहीं हुआ है। सच्ची बात ये है कि अब मेरी फिल्में चल रही हैं। बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कमाई हो रही है। जो लोग कल तक मुझे अपनी बगल में खड़े नहीं होने देते थे, अब मेरे साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं। उन्हें लगने लगा है कि हां यार, इस बंदे में तो दम है। इसे काम दो। थोड़ा अलग लगता है। बस यही सब है। मेरा अक्खड़पन उन्हें अब रास आ रहा है।

आपको नहीं लगता कि इंडस्ट्री आज भी हीरो या हीरोइज्म के पीछे भाग रही है?
देखो, बॉस ये तो चलता रहेगा। पब्लिक पैसा खर्च करके अच्छा थोबड़ा देखने जाती है। एक्टिंग वगैरह से कम ही लोगों को मतलब होता है। और जब तक ये चमकते थोबड़े पसंद किये जाने का चलन चलता रहेगा, इंडस्ट्री ऐसे ही चलेगी। इसलिए हीरो या हीरोइज्म का दौर, जो सेटेलाइट न होने की वजह से पनपा था, अब धीरे-धीरे मंदा भी पड़ रहा है। तभी तो हम जैसे लोगों पर निगाह पड़ रही है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें