‘ऐसे पड़ा था इबोला का नाम’
आज से कुछ 38 साल पहले जब कांगो गणराज्य के जाएरे में एक छोटे से गांव में पहली बार एक बीमारी सामने आई तब इसे कोई इबोला के रूप में नहीं जानता था। वर्ष 1967 में हालांकि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक...
आज से कुछ 38 साल पहले जब कांगो गणराज्य के जाएरे में एक छोटे से गांव में पहली बार एक बीमारी सामने आई तब इसे कोई इबोला के रूप में नहीं जानता था। वर्ष 1967 में हालांकि अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम को इस रहस्यमय बीमारी की जांच का जिम्मा सौंपा गया था और इसी दौरान एक नदी पर इसका नामकरण किया गया।
इबोला आज दुनियाभर में चिंता का विषय बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित दुनिया भर की चिकित्सा संस्थाएं और एजेंसियां पश्चिमी अफ्रीकी देशों में महामारी के रूप में फैले इबोला वायरस को विश्व के लिए बड़े खतरे के रूप में देख रही हैं।
वैज्ञानिकों की टीम में शामिल चिकित्सक एवं शोधकर्ता पीटर पायट ने अपने संस्मरण ‘नो टाइम टू लूज - ए लाइफ इन परस्यूट ऑफ डेडली वायरस’ में लिखा है कि वैज्ञानिकों की टीम ने बीमारी की जड़ यानी वायरस का पता लगाया तो वे उससे होने वाली बीमारी और नतीजों से सकते में आ गए थे।
पायट ने अपनी पुस्तक में कहा है कि वैज्ञानिकों के दल ने मरीजों के खून के नमूनों की जांच की तो उन्हें तार की तरह लंबे कीड़े जैसा दिखने वाला वायरस पाया। वायरस का पता लगाने के बाद जब वैज्ञानिकों का दल जाएरे पहुंचा तो यह देखकर हैरान रह गया कि वायरस न सिर्फ बेहद तेजी से फैल रहा है, बल्कि उतनी ही तेजी से मरीज की जान ले लेता है।
वैज्ञानिकों को यह आभास हो चुका था कि उनका काम आसान नहीं है। उन्हें जल्द से जल्द रहस्यमयी बीमारी फैलाने वाले वायरस के काम करने और उसे फैलने से रोकने का तरीका भी खोजना था। हालांकि उससे पहले उन्हें वायरस का एक नाम भी रखना था।
पायट के अनुसार, एक रात सभी वैज्ञानिक इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि इस वायरस को क्या नाम दिया जाना चाहिए।
पायट ने लिखा है, ‘‘फ्रांस के शोधकर्ता पियरे स्युरो ने सुझाव रखा कि वायरस का नाम यांबूकू गांव के नाम पर रखा जा सकता है, जहां सबसे पहले यह वायरस फैला। लेकिन सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) के शोधकर्ता जोएल ब्रीमैन का तर्क था कि ऐसा करने से गांव को हमेशा के लिए अशुभ मान लिए जाने का खतरा है।’’
सीडीसी के एक अन्य वैज्ञानिक कार्ल जॉनसन ने फिर वायरस का नाम किसी नदी के नाम पर रखने का सुझाव रखा, जिसे सर्वसम्मति से मान लिया गया। पहले वायरस का नाम कांगो नदी के नाम पर रखने का विचार किया गया, जो पूरे कांगो गणराज्य और वनक्षेत्रों से होकर गुजरती है। लेकिन उनका यह प्रस्ताव इसलिए कामयाब नहीं हो सका, क्योंकि कांगो पर एक अन्य वायरस का नाम ‘क्रिमियन कांगो हेमोरहैगिक फीवर वायरस’ पहले ही रखा जा चुका था।
वैज्ञानिकों ने इसके बाद क्षेत्र के नक्शे की मदद ली और पाया कि यांबुकु गांव के पास से इबोला नाम की एक नदी बहती है जिसका अर्थ स्थानीय भाषा लिंगाला के अनुसार ‘काली नदी’ है।
पायट लिखते हैं कि बाद में यद्यपि देखा गया कि नक्शा पूरी तरह सही नहीं था और यांबुकु के सबसे पास से गुजरने वाली नदी इबोला नहीं थी, लेकिन सभी वैज्ञानिकों को यह नाम उपयुक्त लगा और सर्वसम्मति से जानलेवा वायरस का नाम इबोला वायरस रख दिया गया।