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Hindi News 150 देशभक्तों को मिली थी सजा-ए-मौत

150 देशभक्तों को मिली थी सजा-ए-मौत

रामगढ़ के सूबेदार जयमंगल पांडेय तथा नादिरशाह अली पकड़े गये। तीन अक्तूबर 1857 को उन्हें फांसी दे दी गयी। इसी दिन 150 अन्य लोगों को भी फांसी दी गयी थी। केडिया के जमींदार भील सिंह को भूखा रख कर मार डाला...

 150 देशभक्तों को मिली थी सजा-ए-मौत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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रामगढ़ के सूबेदार जयमंगल पांडेय तथा नादिरशाह अली पकड़े गये। तीन अक्तूबर 1857 को उन्हें फांसी दे दी गयी। इसी दिन 150 अन्य लोगों को भी फांसी दी गयी थी। केडिया के जमींदार भील सिंह को भूखा रख कर मार डाला गया। पलामू के नीलांबर शाही, पीतांबर शाही दोनों भोक्ता बंधुओं को लेस्लीगंज में फांसी दे दी गयी। विश्व की इतिहास की इस अद्भुत घटना में पीतांबर शाही की रस्सी टूटने पर भी उनको दोबारा फांसी दी गयी।ड्ढr शिवचरण मांझी, रुदन मांझी, भानू प्रताप शाही जैसे असैनिक क्रांतिकारियों के साथ 150 देशभक्तों को मौत की सजा दी गयी। वर्तमान चतरा के तालाब के किनार लगे वृक्ष पर अंग्रजों के विरुद्ध लड़ने वाले सैनिकों तथा उनके अधिकारियों को फांसी पर चढ़ाया गया। इस तालाब को जनता फांसीहारी पोखरा के नाम से जानती है। तीन अक्तूबर को 27 मृतक सिपाहियों को एक साथ दफनाया गया। दूसर दिन 150 सिपाहियों के साथ भी यही किया।ड्ढr माक्र्स एजेलेस लिखते हैं कि चतरा में युद्ध में 86 अंग्रेज और 10 सिख सैनिक मार गये। साथ में 227 भारतीय सैनिक एवं स्थानीय लोग मार गये। इसके अतिरिक्त डुमरी के लाला इंद्रनाथ शाही, हेसल के लाल श्यामसुंदर शाही, उलिहातू के टिकैत कमल राय, ओरमांझी के टिकैत लोथर सिंह को मौत को गले लगानी पड़ी।ड्ढr चाईबासा के सिपाहियों द्वारा रांची आकर आत्मसमर्पण करने पर 20-25 अक्तूबर 1857 को उनमें से 42 को फांसी दे दी गयी। शरण में आये सिपाहियों के साथ भी अमानवीय व्यवहार किया गया। इसके अतिरिक्त हजारों को कालापानी, आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी। 1857 के अंत तक सिंहभूम की प्राय: सभी जनजातियां इस स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गयीं।ड्ढr पोराहाट के अजरुन सिंह ने सिंहभूम अर्थात कोल्हान क्षेत्र में अंग्रजों को नाकोदम कर दिया। अंत में कोल्हान सेना बिखर गयी। अजरुन सिंह पहाड़ी पर चारों ओर से घिर गये और आत्मसमर्पण कर दिया, जिन्हें बनारस निर्वासित कर दिया गया। संथालपरगना में 1855 में ही विद्रोह हो चुका था। वह विद्रोह 1857 के सभी कारणों से ही दो साल पूर्व ही हुआ था, जिसकी आग ठंडी नहीं हुई थी।ड्ढr आप प्रारंभ में ही देख चुके हैं कि झारखंड में 1857 की क्रांति भी संथालपरगना से ही प्रारंभ हुई। अधिकांश अधिकारी इस जाति की आक्रामकता एवं सामूहिकता से हतप्रभ हो गये थे। किंतु दमनकारी नीतियों के चलते क्रांतिकारियों को घुटने टेकने पड़े।ड्ढr इस तरह झारखंड में 1857 की क्रांति जन विद्रोह के रूप में फैल चुकी थी, जिसमें हर तबके के लोगों ने एकाुटता दिखायी। वास्तव में इस क्रांति के परिणामस्वरूप ही आज झारखंडवासियों के पास जमीन बची है अन्यथा वे लोग बेघरबार भीख मांगते नजर आते। इस क्रांति के पश्चात ही छोटानागपुर टेनेंसी तथा एसपीटी एक्ट बना।ड्ढr (लेखक डोरंडा कॉलेज में इतिहास विभाग के व्याख्याता हैं।)

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