फोटो गैलरी

Hindi News बदलाव के अरमानों में जिंदा हैं ललित

बदलाव के अरमानों में जिंदा हैं ललित

ललित मेहता के हत्यारों को सजा की मांग को लेकर भ्रष्टाचार दमन विरोधी संघर्ष समिति ने रविवार को राजधानी के अलबर्ट एक्का चौक पर धरना दिया। इस दौरान नरगा घोटाले में लिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई और सोशल...

 बदलाव के अरमानों में जिंदा हैं ललित
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
ऐप पर पढ़ें

ललित मेहता के हत्यारों को सजा की मांग को लेकर भ्रष्टाचार दमन विरोधी संघर्ष समिति ने रविवार को राजधानी के अलबर्ट एक्का चौक पर धरना दिया। इस दौरान नरगा घोटाले में लिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई और सोशल ऑडिट सार्वजनिक करने की मांग की गयी।ड्ढr प्रदर्शन में शामिल नरगा समन्वयक केएन त्रिपाठी ने कहा नरगा घोटाले से संबंधित रिपोर्ट पर सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है, जबकि इस संबंध में मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है। समिति ने पलामू में ललित मेहता हत्याकांड की सीबीआइ जांच और दोषियों को अविलंब सजा देने की मांग की। पलामू में हुए सोशल ऑडिट के अनुसार भ्रष्टाचार में शामिल दोषियों को सजा मिले और प्रशासन द्वारा करायी गयी सोशल ऑडिट को सार्वजनिक किया जाये। प्रदर्शन में शामिल पीयूसीएल के त्रिदीव घोष, दिल्ली की सामाजिक किरण शाहीन, शुवेन्दु सेन, राजाराम महतो, केडी सिंह, प्रफुल लिंडा, बलराम, गोपीनाथ घोष, अशरफी नंद आदि ने भी संबोधित किया। राज्यस्तरीय धरने में दिनेश मुमरू, रामदेव विश्व बंधु, उमेश नजीर, ज्योत्सना, रविकिशन, विनीत मुंडू, फादर पीटर तिग्गा, सिस्टर लूसी, रमेश पंका, कपिलेश्वर राम, विजयकांत, यू एन मिश्रा,गुराीत,प्रदीप प्रियदर्शी, कुमार रांन सहित गिरिडीह, पलामू, बिहार, आन्ध्रप्रदेश और दिल्ली के कई जनसंगठनों के सदस्य शामिल हुए। हर दिन 20 घंटे काम करते हैं ज्यांहिन्दुस्तान टीम छतरपुररांची मीडिया की खबरों ने ज्यां द्रेज के प्रति लोगों की उत्सुकता बढ़ा दी है। इससे बेफिक्र खुद ज्यां द्रेज अपने मिशन में जुटे हैं। नरगा की सोशल ऑडिट टीम के साथ छतरपुर के उन गांवों में जा रहे हैं, जहां नक्सलियों के भय से जाने में पुलिस भी कतराती है।ड्ढr 22 मई की सुबह अचानक उनके ठिकाने विकास सहयोग केंद्र के चारों तरफ पुलिस फैल गयी। वहां आने-ााने वाले हरक पर कड़ी नजर रखी जाने लगी। जॉन (यां द्रेज के साथी उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं) ने पूछा यहां इतनी पुलिस क्यों आयी है। जवाब मिला, ललित हत्याकांड के मद्देनजर आपकी सुरक्षा के लिए। वे मुस्कुराते हैं, फिर गंभीर हो जाते हैं, कहते हैं यह सुरक्षा तो उन्हें चाहिए, जो दहशत में जीते हैं। गांव वालों के बीच का आदमी यह सुरक्षा लेकर क्या करगा। वे जवाहर को बुलाकर एक बाइक मांगते हैं और पुरानी सहयोगी रीतिका को साथ लेकर निकल पड़ते हैं। मैले- कुचले सधारण कुर्ता-ाींस तथा चप्पल, माथे पर पट्टी बांधनेवाला जॉन गायब था और पुलिस हलकान।ड्ढr प्राय: ऐसा ही होता है। हालांकि जॉन कभी अचानक नहीं निकलते। उन्हें जानने वालों को पता है कि छोटे-छोटे दैनिक कार्यो की भी पूरी और स्पष्ट प्लानिंग उनके दिमाग में रहती है। छतरपुर प्रखंड मुख्यालय से लगभग 24 किमी. दूर नक्सल प्रभावित इलाके के कई गांवों में जॉन ने छह घंटे बिताये।ड्ढr कोई झोपड़ीनुमा मकान देखा और झट से अंदर चले जाते हैं। पहले दोनों हाथ जोड़ कर ग्रामीणों का आशीर्वाद लेते हैं। फिर जमीन पर बैठकर खेती, मजदूरी, भूख, अनाज, कुशल क्षेम, शिक्षा, सिंचाई से प्रारंभ होकर बातें गरीबों के हक अधिकार से लेकर नरगा तक पहुंचती है। कोई गरीब पूरी बात जान ले तब जॉन का चेहरा खिल उठता है। कुछ रोटियां, फल या बिस्किट, यही है उनका भोजन। वह भी मिल जाये तो ठीक, नहीं मिले तो भी ठीक। गांव का पानी जरूर पीते हैं। चुआड़ी या नदी का भी। ं

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें